Book Title: Prakrit Vidya 1999 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 54
________________ I, P. 289)। अजयपाल के उत्तराधिकारी हरिपाल' का उल्लेख सं० 1227 (1170 A.D.) के महावन से प्राप्त शिलालेख में उपलब्ध है (दखो Epigraphica Vol. II, P. 276)। भरतपुर राज्य के 'अघपुर' नामक स्थान से एक मूर्ति प्राप्त हुई है, जिसके मूर्तिलेख में सं0 1249 (1192 A.D.) में राजा सहनपाल का उल्लेख मिलता है, जो इसी यदुवंशी वंश-परम्परा के शासक थे। किसी विद्वान् ने मुनि विनयचंद्र का समय वि०सं० 1576 लिखा है, जो सर्वथा भ्रमपूर्ण है। विनयचन्द्र नाम के दशों विद्वानों का उल्लेख श्वेताम्बर-साहित्य में उपलब्ध है। सं० 1445 में लिपिकृत गुटके में मुनि विनयचंद कृत 'कल्याणरासक' की रचना विद्यमान है; अत: उनका समय निस्संदेह इस तिथि से पूर्व तो सुनिश्चित है ही। तथा कवि लाखू (लक्ष्मण) ने अपने 'जिनदत्तचरित' में भी किया है, त्रिभुवनगिरि का उल्लेख जिसे राजा त्रिभुवनपाल ने बसाया था। यह नगर अपने समय का अत्यधिक सम्पन्न, समृद्ध एवं राजकीय वैभव से परिपूर्ण नगर था, जिसे देखकर म्लेच्छाधिपति मुहम्मद गौरी ने सं० 1252 (1195 A.D.) इस पर आक्रमण कर इस समृद्ध नगरी को नष्ट-भ्रष्ट और तहस-नहस कर दिया था, जिससे यहाँ के निवासी हिन्दू और जैन नगर छोड़कर अन्यत्र बाहर भाग गये थे। सभी मंदिरों की मूर्तियों को तोड़-फोड़ दिया गया था। मुसलमानी तबारीख (इतिहास) 'ता जुल मासिर' में हसन निजामी ने लिखा है कि “हिजरी सन् 572 तदनुसार वि०सं० 1152 (1195 A.D.) में मुहम्मद गौरी ने त्रिभुवनगढ़ पर चढ़ाई कर इसे अपने अधिकार में ले लिया था और वहरुद्दीन तुघलिक (तुमरीन) को यहां का शासक नियुक्त किया था।" इसतरह त्रिभुवनगिरि के विनाश होने का समय सं० 1252 सुनिश्चित ही है, तो मुनि विनयचंद इससे पूर्व यहाँ अवश्य ही रहा करते होंगे। 'खरतरगच्छ युगप्रधान गुर्वावली' में त्रिभुवनगिरि का उल्लेख निम्न शब्दों में अंकित है "सं0 1214 श्री जिनचन्द्रसूरिभिस्त्रिभुवनगिरौ श्रीशान्तिनाथशिखरे सज्जन-मनो-मन्दिरे प्रमोदारोपणमिव सौवर्णदण्डकलश-ध्वजारोपण महता विस्तरेण कृत्वा हेमदेवी-गणिन्या प्रवर्तनी-पदं दत्त्वा.....।” . इस तरह उपर्यक्त प्रमाणों से मुनि विनयचंद का समय सं0 1210-15 के आसपास सुनिश्चित होता है। मुनि विनयचन्द्र ने 'चूनडीरासक' की स्वोपन टीका में 18 लिपियों का नामोल्लेख कर भाषावैज्ञानिकों को भाषा और लिपि के तुलनात्मक अध्ययन की अच्छी सामग्री प्रस्तुत कर दी है। इन लिपियों का उद्योतनसूरि कृत 'कुवलयमालाकहा' (7-8वी सदी) में वर्णित देशी-भाषाओं के साथ तालमेल बिठाकर हमने निम्न तालिका तैयार की है। सुधी पाठक इसका विश्लेषण कर समुचित सुझाव प्रस्तुत करने का कष्ट करें। 5-6 लिपियों का तालमेल नहीं बैठ पा रहा है, अत: उनका उचित तालमेल बैठाने में सहयोग भी प्रदान करें। 0052 प्राकृतविद्या+जुलाई-सितम्बर '99

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