Book Title: Prakrit Vidya 1999 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 36
________________ मत है। संसार में जितने उच्चकोटि के लेखक, वक्ता और विचारक हुए हैं, उनके सिरहाने पुस्तकों से बने हैं। विश्व के ज्ञान-विज्ञानरूपी तूलधार को उन्होंने अभ्रान्तभाव से आँखों की तकली पर अटेरा है और उसके गुणमय गुच्छों से हृदय-मन्दिर को कोषागार का रूप दिया है। लेखन की अस्खलित सामर्थ्य को प्राप्त करनेवाले रात-दिन श्रेष्ठ साहित्य के स्वाध्याय में तन्मय रहते हैं। बड़े-बड़े अन्वेषक और दार्शनिक रात-दिन भूख-प्यास को भूलकर स्वाध्याय में लगे रहते हैं। स्वामी रामतीर्थ जब जापान गए, तो व्याख्यान-सभा में उपस्थित होने पर उन्हें पराजित करने की भावना से मंच-संयोजक ने बोर्ड पर शून्य (6) लिख दिया। भाषण के प्रथम क्षण स्वामी रामतीर्थ को पता चला कि उन्हें शून्य पर भाषण करना है। उन्होंने जापानियों की दृष्टि में शून्य प्रतीत होनेवाले उस अकिंचन विषय पर इतना विद्वत्तापूर्ण भाषण दिया कि श्रोता उनके वैदुष्य पर धन्य-धन्य और वाह-वाह' कह उठे। यह उनके विशाल भारतीय वाङ्मय के स्वाध्याय का ही फल था। काव्यमीमांसाकार राजशेखर ने लिखा है कि “जो बहुज्ञ होता है, वही व्युत्पत्तिमान होता है। जिसको स्वाध्याय का व्यसन है वही बहुज्ञ हो सकता है।" ____गोस्वामी तुलसीदास ने रामभक्ति के विषय में कहा कि “जैसे कामी पुरुष को नारी प्रिय लगती और लोभी को पैसा प्रिय लगता है; उसीप्रकार जिसे भक्ति प्रिय लगे, वह भगवान को पा सकता है।" ठीक यही बात स्वाध्याय के लिये लागू होता है। जो व्यक्ति अध्ययन के लिये अपने को अन्य सभी ओर से एकाग्र कर लेता है वही स्वाध्याय-देवता के साक्षात्कार का लाभ उठाता है। पढ़नेवालों ने घर का लैम्प के अभाव में सड़कों पर लगे 'बल्बों' की रोशनी में ज्ञान की ज्योति को बढ़ाया है। जयपुर के प्रसिद्ध विद्वान् पं० हरिनारायण जी पुरोहित ने बाजार में किसी पठनीय पुस्तक को बिकते हुए देखा। उस समय उनके पास पैसे नहीं थे, अत: उन्होंने अपना कुर्ता उतारकर उस विक्रेता के पास गिरवी रख दिया और पुस्तक घर ले गये। - इसप्रकार उनका विद्याभूषण' नाम सार्थक हुआ। भारत के इतिहास में ऐसे अनेक स्वाध्यायपरायण व्यक्ति हो चुके हैं। विदेशों में अधिकांश व्यक्तियों के घरों में 'पुस्तकालय' हैं। वे अपनी आय का एक निश्चित अंश पुस्तक खरीदने में व्यय करते हैं। धर्म-ग्रन्थों का दैनिक पारायण करने वाले स्वाध्यायी आज भी भारत में वर्तमान हैं। वे धार्मिक स्वाध्याय किये बिना अन्न, जल ग्रहण नहीं करते। ___'स्वाध्यायान् मा प्रमद' अर्थात् स्वाध्याय के विषय में प्रमाद मत करो। स्वाध्यायशील अपने गन्तव्य-मार्ग को स्वयं ढूँढ निकालते हैं। अज्ञान के हाथी पर स्वाध्याय का अंकुश है। पवित्रता के पत्तन में प्रवेश करने के लिए स्वाध्याय तोरणद्वार है। स्वाध्याय न करनेवाले अपनी योग्यता की डींग हाँकते हैं। किन्तु स्वाध्यायशील उसे पवित्र गोपनीय निधि मानकर आत्मोत्थान के लिए उसका उपयोग करते हैं। उनकी मौन आकृति पर स्वाध्याय के अक्षय वरदान मुसकाते रहते हैं। और जब वे बोलते हैं, तो साक्षात् वाग्देवी 40 34 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99

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