________________
प्रति-परिचय :
तिसट्टिमहापुराणपुरिसआयारगुणालंकारु' की प्रस्तुत प्रतिलिपि वि०सं० 1499 आषाढ़ सुदी 5 बुधवार की है। इसका प्रतिलिपि-स्थल गोपाचल-दुर्ग है। साधु (साहू) नत्यु के पुत्र रामचन्द्र ने इसकी प्रतिलिपि गोपाचल के तोमरवंशी राजा डूंगरसिंह, (वि०सं० 1481 से 1510 है.) के राज्यकाल में की थी, जैसाकि अन्त्य 'पुष्पिका' से विदित हुआ है:__ “अथ संवत्सरेऽस्मिन् श्री विक्रमादित्य-गताब्द-संवत् 1499 वर्षे आषाढ़ सुदि 5 बुद्धवासरे श्री गोपगिरी महाराजाधिराजा श्री डूंगरसिंह राजा वर्तमाने साधु नत्थू पुत्र रूपचन्द्र लिखितम्।"
उक्त प्रतिलिपिकार रूपचन्द्र वही है, जिन्होंने महाकवि रइधू के पासणाहचरिउ' की वि०सं० 1498 में प्रतिलिपि की थी। वह प्रति सचित्र है, जो दिल्ली के एक प्राचीन जैन शास्त्रभण्डार में सुरक्षित है। तिसट्ठि-महापुराण' एवं उक्त पासणाहचरिउ' के प्रतिलिपिकालों से यह स्पष्ट है कि प्रतिलिपिकार रूपचन्द्र ग्रंथकर्ता कवि रइधू के समकालीन एवं उनके अनन्य भक्त थे। इन रूपचन्द्र की उक्त दोनों ग्रन्थों की प्रतिलिपियों को देखने से यह भी स्पष्ट विदित होता है कि वे एक प्रामाणिक सुप्रतिलिपिकार, अपभ्रंश-भाषा के जानकार, विद्वान् साहित्यरसिक एवं जिनवाणी-भक्त थे। यह भी प्रतीत होता है कि वे सम्भवत: चित्रकार भी थे और उक्त 'पासणाहचरिउ' के चित्र सम्भवत: उन्हीं के द्वारा निर्मित थे। इस विषय में विशेष शोध-खोज की आवश्यकता है। पासणाहचरिउ' (सचित्र) की प्रतिलिपिकारप्रशस्ति में उन्हें अग्रोतक वंशोत्पन्न-साधू नत्थू एवं करमा का पुत्र कहा गया है।
तिसट्ठि-महापुराण' की प्रस्तुत प्रति में कुल 456x2 पृष्ठ हैं। प्रत्येक पृष्ठ की लम्बाई एवं चौड़ाई 11.10"x5.5" है। दायाँ एवं बायाँ हाँशिया 1".6" तथा 1".6" ऊपरी एवं . निचला हाँशिया 0.5" तथा 0.5" है। प्रत्येक पृष्ठ में कुल पंक्तियाँ 13-13 तथा प्रत्येक पंक्ति में वर्ण संख्या 38 से 44 के मध्य है। प्र०सं० 284ख से लेकर 344क तक के पृष्ठों को छोड़कर बाकी के समस्त पृष्ठों का कागज मोटा एवं उनका रंग मटमैला है। मौसमी प्रभाव एवं प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों की सुरक्षा-सम्बन्धी असावधानी से उसकी लिखावट कहीं-कहीं धुंधसली तथा बरसाती नमी के कारण पृष्ठों के परस्पर में चिपक जाने से भी उनकी लिखावट कहीं-कहीं क्षतिग्रस्त हो गई है। अन्तिम पृष्ठ की लिखावट तो इतनी धुंधली हो गई है कि उसे पढ़ना असंभव-जैसा हो गया है।
पृ०सं० 284ख से 344 तक के पृष्ठ अपेक्षाकृत सफेद एवं पतले हैं। उनकी लिखावट भी भिन्न है। उनमें प्रत्येक पृष्ठ में 15-15 पंक्तियाँ है और हाँशिये भी अपेक्षाकृत छोटे हैं। इनमें घत्ता' शब्द एवं घत्तों की संख्या के स्थान रिक्त हैं। प्रतीत होता है कि प्रतिलिपिकार ने प्रतिलिपि कर चुकने के बाद लाल-स्याही से उन्हें लिख देने के विचार से छोड़ दिया होगा. किन्तु बाद में किसी कारण-विशेष से वह वैसा नहीं कर पाया होगा। समग्र पृष्ठों में काली-स्याही का प्रयोग किया गया है, किन्तु मूलपृष्ठों की काली-स्याही से वह भिन्न है।
10 40
प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99