Book Title: Prakrit Vidya 1999 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 47
________________ किये हैं। ज्येष्ठ भाई एवं भाभी का नाम क्रमश: वाहोड एवं नयनश्री था, जिससे मोलिक्य नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। मंझले भाई एवं भाभी का नाम क्रमश: माहणसिंह एवं लवंगश्री था। इनकी सन्तान का उल्लेख नहीं है। रइधू सबसे छोटे भाई थे। उनकी पत्नी का नाम लक्षणश्री था। कवि ने अपनी एक अन्य रचना मेहेसरचरिउ' में अपनी पत्नी का नाम सावित्री कहा है। इन दो पृथक-पृथक् नामों से यह कहना कठिन है कि उनकी दो पत्नियाँ थी अथवा एक के मृत होने पर उन्होंने अपना दूसरा विवाह किया था। कवि का यह पारिवारिक परिचय यद्यपि अत्यन्त संक्षिप्त एवं नामावली मात्र है; फिर भी वह उसकी अन्य रचनाओं में उपलब्ध परिचय की अपेक्षा अधिक स्पष्ट एवं विस्तारपूर्वक है। क्योंकि इसमें उसके परिवार का पूर्व विवरण एक साथ मिल जाता है। किन्तु विश्वास है उसकी अद्यावधि अनुपलब्ध करंकडचरिउ, कोमुइकहापवंधु, जिणदत्तचरिउ, भविसयत्तचरिउ, पज्जुण्णचरिउ नामक रचनायें जब उपलब्ध होंगी; तब सम्भव: कवि का परिचय अपनी अन्य कुछ विशेष विशेषताओं के साथ उपलब्ध हो सके? महाकवि रइध के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर पर्याप्त चर्चा हो ही चुकी हैं, अत: यहाँ संक्षेप में इतना जान लेना ही पर्याप्त होगा कि उनका जीवन एवं रचनाकाल वि०सं० 1440 से वि०सं० 1536 के मध्य रहा है। उन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचनायें कीं, जिनमें से अभी तक 23 ग्रन्थ उपलब्ध हो चुके हैं तथा 6 ग्रन्थ ज्ञात, किन्तु अभी तक अप्राप्त हैं। ग्रन्थ का विषय-क्रम : __ प्रस्तुत ग्रन्थ की सन्धिक्रमानुसार विषय-सूची निम्न प्रकार हैसन्धि सं० कडवक सं० विषयक्रम | - ल + महावल तणु विभोयणं ललियंग देवोप्पत्ति वण्णणं। वज्जणाभि-चक्कवट्टि तित्थयर-गोत्त-बंध सव्वत्थसिद्धि-गमणं। रिसहेसर-णिक्कमण कल्लाण वण्णणो णमि-विणमि वेयड्ढलंभो। भरह छक्खंड-पसाहणं। भरह मेहेसर-सुलोयणा भवंतर-वण्णणं। सिरिवाल-कहंतर-पयासण रिसहेसर-भरह-णिव्वाणगमणं । अजियणाह-सगर-चक्कवट्टि कहंतरं वण्णणं । सुपासणाह-णिव्वाण-गमणं। ससिपह-जिण-णिव्वाण-गमणं। अस्सगीव-तिविट्ठकहा। संजयंत-मंदरमरकहा। सणंकुमार-णिव्वाण-गमणं। 8. 31 10. 11. 42 25 24 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99 00 45

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