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की जाती है।
(2) 'शतपथ ब्राह्मण' आदि वैदिक ग्रंथों से ज्ञात होता है कि वहाँ ऐसी आबादी थी, जिसका ब्राह्मणीकरण 900 ई०पू० तक नहीं हो पाया था। एक उद्धरण प्रस्तुत है"एतरेय आरण्यक (2, 1-1-5) में बंग, वगध और चेरपादों को वैदिक धर्म का विरोधी बतलाया है। इनमें से 'बंग' तो निस्संदेह बंगाल के अधिवासी हैं, 'वगध' अशुद्ध प्रतीत होता है, संभवतया 'मगध' होना चाहिए। चेरपाद' बिहार और मध्यप्रदेश के चेर' लोग जान पड़ते हैं। ...डॉ० भाण्डारकर ने (भा० इं० पत्रिका, जिल्द 12, पृष्ठ 105) में लिखा है कि ब्राह्मणकाल तक अर्थात् ईसा पूर्व नौंवी सदी के लगभग तक पूर्वीय भारत के चार समूह मगध, पुंइ, बंग और चेरपाद आर्यसीमा के अंतर्गत नहीं आए थे।"
–(पं0 कैलाशचंद्र शास्त्री, जैन-साहित्य का इतिहास-पूर्व पीठिका, पृ० 212)। (3) पटना विश्वविद्यालय के डॉ० अरुण कुमार सिंह ने यह मत व्यक्त किया है कि “The prehistoric remains in the form of stone tools and implements belonging to paleolithic, mesolithic and neolithic phases have come from localities located within the district of Gaya.” इन औजारों का उपयोग करनेवाली आबादी भी सुदूर-सुदूर अतीत में रही होगी।
(4) श्री राम अयोध्या में जन्मे थे। यह नगरी 'कोसल' में मानी जाती है। लेकिन एक शंका यह होती है कि अयोध्या तो वाराणसी, गया से बहुत दूर नहीं है। क्या उनकी लीला मध्यगंगा के जनशून्य प्रदेश में हुई थी या नहीं। इतनी महान आत्मा केवल कोसल में या केवल मगध से बाहर के प्रदेश तक ही सीमित रही होगी —ऐसा विश्वास नहीं होता है।
हिंद-पुराणों में आयु-संबंधी कथन:-विद्वान् लेखक ने तीर्थंकर का जिक्र करते हुए लिखा है कि उनसे संबंधित “मिथक-कथा जैन-संप्रदाय की प्राचीनता सिद्ध करने के लिए गढ़ ली गई है।" जरा देखें कि जैन लोग तो मिथ्याकथन के दोषी हैं ही, हिंदू कितने वास्तविकतावादी हैं और इतिहाससम्मत कितना कथन अपने देवताओं या महापुरुषों के संबंध में करते हैं कि इस पुस्तक के इतिहासज्ञ विद्वान् संतुष्ट हो सकें। नीचे कुछ तथ्य दिए जाते हैं
(1) स्वायंभुव मनु के पुत्र प्रियव्रत ने ग्यारह अरब वर्षों तक राज्य किया था (जगतीपतिर्जगतीमर्बुदान्येकादश-परिवत्सराणामव्याहताखिल...भागवत, पंचम स्कंध, अध्याय 1, श्लोक 29)। तथा आग्नीध्र ने एक करोड़ वर्ष तक राज्य किया।
(2) ऋषभपुत्र भरत ने एक करोड़ वर्ष तक का जीवन भगवद्भक्ति आदि में बिताया और वे पुलहाश्रम चले गए (एवं वर्षायुतसहस्रपर्यन्तावसित कर्मनिर्वाणावसरोऽभुज्यमानं... भागवत, 5-7-8) इन पंक्तियों का हिंदी अनुवाद गोरखपुर संस्करण में इसप्रकार दिया गया है," इसप्रकार एक करोड़ वर्ष निकल जाने पर राज्यभोग का प्रारंभ क्षीण हुआ जानकर...।"
। प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99
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