Book Title: Prakrit Vidya 1999 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 26
________________ परिचित हो गए थे” (प०42) अर्थात् खेती करना सीख गए थे। किंतु एक परेशानी यह है कि अमेरिकन तो कहते हैं कि “गेहूँ की खेती करना सबसे पहले अमेरिका के लोगों ने शुरू की थी।" क्या हम उनका दावा मान लें? चाक्षुष मन्वन्तर की उपलब्धियों का क्या होगा। जैन-मान्यता तो यही है कि ऋषभदेव ने लोगों को खेती करना सिखाया था। ___(5) रूस में 20-25 फुट लंबे मानव-अवशेष भी मिल गए हैं। ये तीर्थंकरों के शरीर-संबंधी कथनों की सत्यता की ओर संकेत करते प्रतीत होते हैं। संभव है और भी विस्तृत अवशेष किसी दिन प्राप्त हो जायें। (6) सन् 1920 तक वैदिक-सभ्यता को पाश्चात्यों ने सबसे प्राचीन सभ्यता' बतलाया था; किंतु सिंधु-सभ्यता ने पुरातत्त्वविदों की धारणा ही बदल दी। उपर्युक्त तथ्यों से यही बात समझ में आती है कि पुरातात्त्विक साक्ष्य बदलते रहते हैं और कोई भी पुरातत्त्वविद् या इतिहासकार शायद यह नहीं कह सकता कि वह अंतिम परिणामों तक पहुँच गया है और उनके कारण परंपरा से चली आई जातीय स्मृति Racial Memory को मिथ्या या फेंक देने लायक घोषित करना उचित नहीं जान पड़ता। इस विषय में UNESCO की सलाह शायद सभी को जॅचेगी। वह है “The terms pre-history and archaeologys are frequently confused. it should be borne in mind, however, while pre-history is a period of the history of mankind for which there are no written sources, archaelogy is a method of research. It studies the past taking as its basis the examination of the material remains left by the people of the past. ARCHAEOLOGY IS THE MAIN BUT NOT THE SOLE DISCIPLINE THAT CAN INFORM US ABOUT PRE-HISOTRY." (Introduction, History of humanity, Vol.1, Prehistory and Beginnings of Civilization, Ed. S.J. Laser, Unesco, 1994) (The present author is responsible for the capital letters). __ पंद्रह तीर्थंकरों की ऐतिहासिकता नितांत संदिग्ध:-लेखक महोदय ने यह लिखा है कि बिहार में उत्पन्न पंद्रह तीर्थंकरों की ऐतिहासिकता नितांत संदिग्ध है; क्योंकि वे पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में उत्पन्न हुए थे और “मध्य गंगा मैदान का कोई भी भाग ईसा पूर्व छठी सदी से पहले आबाद नहीं हुआ था।” इस संबंध में कुछ तथ्य इसप्रकार हैं___ (1) लेखक ने महावीर को अंतिम तीर्थकर (भूल से) बताते हुए जैनधर्म का उद्भव ईसापूर्व नौंवी सदी में बताया है। यह समय तो पार्श्वनाथ का है, जिनका निर्वाण महावीरनिर्वाण (527 B.C.) से 250 वर्ष पूर्व हुआ था। उनकी आयु 100 वर्ष की थी। इसप्रकार उनका जन्म ईसापूर्व 877 में हुआ था। वे बनारस में जन्मे थे। उनके पिता राजा थे। उस समय वहाँ आबादी अवश्य रही होगी। यह तथ्य लेखक भूल गए और लिख दिया कि ईसापूर्व छठी सदी में उधर आबादी ही नहीं थी। पार्श्वनाथ का अस्तित्व तो उन्होंने इसी लेख में स्वीकार किया है। वे यह भी जानते होंगे कि बनारस की गणना किस प्रदेश में 00 24 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99

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