Book Title: Prakrit Vidya 1999 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 30
________________ अथवा कृष्ण भटकते रहे, तो बहुसंख्य लोग नाराज हो जायेंगे। महात्मा गौतम बद्ध और महावीर का विहार होता था। उनके प्रति आदर दर्शाने के लिए मगध का नाम बदलकर बिहार कर दिया गया —ऐसा विद्वानों का कथन है। महावीर कोई राह नहीं भूले थे जिससे यह कहा जाये कि वे “भटकते रहे।" वस्त्र:—यह कथन भी संभव नहीं जान पड़ता कि 'महावीर ने बारह वर्षों तक वस्त्र नहीं बदले।' मूलसंघ की परंपरा यह मानती है कि महावीर दीक्षा लेने के बाद नग्न ही रहे। ___पशु की हत्या पर फांसी:-विशाल जैन-साहित्य के किसी एक कोने से विद्वान् लेखक कोई उदाहरण ढूंढ़ लाये हों, किंतु यह भी संभवत: सत्य है कि सनकी राजा हर युग में और हर जाति में हुए हैं। पुष्यमित्र को ही लें। उसने मौर्य राज्य के सिंहासन पर बैठते ही घोषणा कर दी थी कि “जो मुझे श्रमण का सिर काटकर लाकर देशा, उसे मैं सौ दीनार दूँगा।" श्रमणों का अपराध? वे उसके धर्म को नहीं मानते थे। उसकी तो पूजा होने लगी थी (पुष्यमित्रं यजाम:)। दुष्यन्त-पुत्र भरत को ही लें। उसकी तीन रानियाँ बताई जाती हैं। उनके पुत्र उत्पन्न हुए, लेकिन रानियों ने उन पुत्रों को इसलिए मार डाला कि वे भरत के अनुकूल नहीं थे ऐसा 'भागवत' में लिखा है। वह निस्संतान ही रहा। ऐसे राजा के नाम पर भारत का नाम भारतवर्ष पड़ा —यह प्रचारित किया जाता है। शायद इसलिए कि ऋषभ-पुत्र भरत के नाम पर भारत कहें (बहुसंख्य वैदिक पुराणों ने कहा भी है), तो जैनधर्म की प्राचीनता सिद्ध हो जाती है। क्या ये राजा न्यायी थे? भारत सरकार तो पेड़-पौधों, पक्षियों तथा खूखार पशुओं जैसे शेर की रक्षा में शायद उक्त राजा से भी आगे है। यदि मैं अपने घर के सामने के पेड़ को उद्यान विभाग की . अनुमति के बिना काट डालूँ, तो मैं दंडित किया जाऊंगा।। त्रिरत्न:-जैनधर्म के त्रिरत्न' के सही नाम सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र हैं। दर्शन का परिचय देते समय उस धर्म के पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग किया जाता है, न कि पर्याय आदि के द्वारा उसका परिचय कराया जाता है। उन शब्दों का विशिष्ट अर्थ होता है। युद्ध और कृषि:-तीर्थंकर ऋषभदेव ने असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प आदि षट्कर्मों का उपदेश दिया था—यह बात जैन लोग हजारों वर्षों से प्रतिपादित करते रहे हैं। सबसे पहला कर्म 'असिकर्म' था। कृषि का प्रारंभ भी ऋषभ की देन है। जैनधर्म में कृषि आदि जीविका कार्यों में होने वाली हिंसा 'उद्योगी हिंसा' कहलाती है। वह गृहस्थों के लिए क्षम्य है। 'संकल्पी हिंसा' का निषेध किया गया है। अपने आश्रितों, धर्म या देश की रक्षा के लिए की जानेवाली हिंसा विरोधी हिंसा' है। गृहस्थ और मुनि द्वारा पालन की जानेवाली हिंसा का बड़ा सूक्ष्म विवेचन जैनधर्म में है। इतिहास साक्षी है कि जैनधर्मपालक सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने देश की रक्षा की थी और 0028 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99

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