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related to only unhistorical fictitious beings! Making reasonable allowance for the glorification and exaggeration which each religion attaches to its heroes, we have reason to place our credence in the historical authenticity of 24 Tirthankaras. (p.13, B.C. Bhattacharya, Jain Iconography)
जैन-संप्रदाय: लेखक ने 'जैनधर्म' के स्थान पर 'जैन-संप्रदाय' का प्रयोग किया है। 'संप्रदाय' शब्द संकीर्णता का बोधक हो चला है, जैसे सांप्रदायिक ताकतें । इस पाठ में बौद्ध धर्म के लिए केवल एक ही बार संप्रदाय शब्द का प्रयोग है; किंतु उसके बाद अनेक बार बौद्धधर्म का प्रयोग किया है। जैनधर्म को संप्रदाय लिखने में लब्ध-प्रतिष्ठित लेखकों की उस परंपरा को गलत ठहराना है, जो सदा ही जैनधर्म शब्द का प्रयोग करती आ रही है। जैनधर्म कोई Sect नहीं है, बल्कि एक Religion है। ___ आचार्य या तीर्थंकर:-तीर्थंकर को आचार्य कहना गलत है। जैनधर्म में आचार्य का स्थान तीसरा है। आचार्य आज भी होते हैं, तीर्थंकर नहीं। जैन णमोकार मंत्र' इसप्रकार है—“णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ।” प्राकृत 'आइरिय' का संस्कृत रूप 'आचार्य' होता है। किसी धर्म का विवेचन उस धर्म की शब्दावली में होना चाहिए। हम 'अल्लाह' को 'संत' 'ऋषि' या 'महात्मा' नहीं लिख सकते, विशेषकर उस समय जब कि उस धर्म का परिचय देना अभीष्ट हो।
जैनधर्म की स्थापना:-ऊपर के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जैनधर्म के संस्थापक हैं। यदि यह नहीं लिखा जाए, तो 'भागवत' का कथन असत्य है—यह घोषणा करनी होगी।
महावीर का गाँव:-लेखक ने लिखा है कि महावीर का जन्म किसी गाँव में हुआ था। विद्वान् इतिहासज्ञ यह जानते होंगे कि महावीर भारत के सबसे प्राचीन उस वैशाली गणतंत्र तथा उसके संथागार के पास स्थित कुंडग्राम में जन्म थे, जो कि वैशाली का एक उपनगर था। यदि संदेह हो तो श्री जगदीशचंद्र माथुर, राहुल सांकृत्यायन के लेख और पटना विश्वविद्यालय के प्रो० योगेन्द्र मिश्र की पुस्तक वैशाली' तथा डॉ० राजेंद्रप्रसाद द्वारा लिखित प्राकृत और हिंदी में वैशाली में स्थापित शिलालेख पढ़ लें। उनका यह भ्रम दूर हो जाएगा। भगवान् महावीर सामान्य व्यक्ति नहीं थे। उनके पिता राजा कहलाते थे। लेखक ने “अहं राजा” पढ़ा होगा। उनकी माता वैशाली गणतंत्र के प्रधान की पुत्री थी।
सन्यासी:-इस लेख में तीर्थंकर के लिए सन्यासी' शब्द का प्रयोग उचित नहीं है। जैन साधु मुनि' कहलाते हैं, फिर तीर्थंकर तो और भी पूज्य हैं। ऋषि-मुनि एक युग्म है। अंतर समझना चाहें तो प्रो० बलदेव उपाध्याय, मंगलदेव शास्त्री, डॉ० गोविंदचंद्र पांडेय, भरतसिंह उपाध्याय आदि विद्वानों के ग्रंथ देख लें।
भटकते रहें: यदि कोई यह कहे कि विवेकानंद भारत में भटकते रहे या राम
प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99
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