Book Title: Prakrit Vidya 1999 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 17
________________ जैन-संस्कृति एवं तीर्थंकर-परम्परा -बिशम्भरनाथ पांडे __ यह महत्त्वपूर्ण सामग्री सुप्रसिद्ध विद्वान् एवं उड़ीसा प्रांत के भूतपूर्व राज्यपाल स्व० श्री बिशम्बरनाथ जी पांडे की अमरकृति 'भारत और मानव संस्कृति' में आयी है। जैन-संस्कृति एवं तीर्थंकर-परम्परा के बारे में उनके निष्पक्ष एवं प्रामाणिक विचार निश्चय ही सीमित सोच एवं पूर्वाग्रह रखनेवाले व्यक्तियों को चिंतन के नूतन आयाम प्रदान करेंगे। अन्य जिज्ञासु पाठकवृन्द को तो यह आलेख एक पौष्टिक ज्ञानभोजन के रूप में आनंददायी होगा ही। -सम्पादक जैन-संस्कृति का मर्म जैन-संस्कृति के बाहरी स्वरूप में अनेक वस्तुओं का समावेश हुआ है। शास्त्र, भाषा, मन्दिर, स्थापत्य, मूर्ति-विधान, उपासना के प्रकार, उसमें काम आने वाले उपकरण तथा द्रव्य, समाज के खान-पान के नियम, उत्सव, त्यौहार आदि अनेक विषयों का जैनसमाज के साथ एक निराला संबंध है। प्रश्न यह है कि जैन-संस्कृति का मर्म क्या है? इसका संक्षिप्त जवाब तो यही है कि 'निवर्तक धर्म' जैन-संस्कृति की आत्मा है। जो धर्म निवृत्ति करानेवाला अर्थात् पुनर्जन्म के चक्र का नाश करानेवाला हो या उस निवृत्ति के साधनरूप से जिस धर्म का आविर्भाव, विकास और प्रचार हुआ हो, वह 'निवर्तक धर्म' कहलाता है। निस्संदेह जैन-श्रमणों ने साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका - इस चतुर्विधि संघ' का सुंदर संगठन किया था। श्रावक-श्राविका अपने धर्मगुरुओं के आहार आदि की व्यवस्था करते थे, जबकि धर्मगुरु अपने 'चतुर्विधि संघ' की देखभाल करते, धर्मप्रचार और आत्मसंशोधन में अपनी सारी शक्ति लगाते थे। वास्तव में देखा जाये तो यह बड़ा ही सुंदर कार्य-विभाजन था। जैन-संस्कृति की विशेषता है कि केवल मनुष्य को ही नहीं, अपितु जीवमात्र को अभय बनाना। जैन-संस्कृति कहती है "दूसरों को विवेकपूर्ण जीवन बिताने के लिये प्रोत्साहित करो-उन्हें सहयोग दो।" जैन-संस्कृति गृहस्थ को भी इन्द्रियवासना से मुक्त होने की शिक्षा देती है। जैनधर्म का पालन करनेवाले व्यक्ति को सात व्यसनों का पहले त्याग करना चाहिये, तब कहीं वह श्रावक बन सकता है। धर्म पर श्रद्धा लाते ही उसे वासनाओं को जीतने का प्रयत्न प्रारंभ कर देना होगा। सात व्यसन ये हैं, जिनका त्याग उसे करना चाहिए- 1. शिकार खेलना, मछली मारना आदि, 2. झूठ बोलना, 3. वेश्या-सेवन और परस्त्रीगमन, 4. चोरी, 5. शराब, भांग, चरस, मद्यपान आदि, 6. जुआ खेलना और 7. मांस खाना। प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99 00 15

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