Book Title: Pragnapana Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
६
*******************
प्रज्ञापना सूत्र
प्रभावक आचार्य होने के कारण कालकाचार्य ने देश काल आदि की परिस्थिति को देखते हुए, भादवा सुदी चतुर्थी को संवत्सरी पर्व मना लिया। परन्तु आगमानुसार समवायाङ्ग सूत्र के सित्तरवें समवाय में तथा निशीथ सूत्र के दसवें उद्देशक में बताया गया है कि संवत्सरी पर्व भादवा सुदी पंचमी को ही आता है । कालकाचार्य के ऊपर के उल्लेख से ऐसा सम्भावित होता है कि दूसरी संवत्सरी आने के पहले ही ये द्वितीय कालकाचार्य स्वर्गवासी हो चुके थे । अन्यथा वे दूसरे वर्ष की संवत्सरी आगमानुसार भादवा सुदी पंचमी को ही करते परन्तु ऐसा नहीं हो सका। पीछे उनके अनुयायियों ने इस बात को आग्रह पूर्वक पकड़ लिया और चतुर्थी को ही संवत्सरी मनाने लगे। जो आज तक भी करते आ रहे हैं ।
इन कालकाचार्य का परिचय इस प्रकार दिया जाता है कि पंचमी के स्थान पर चतुर्थी को संवत्सरी करने वाले कालकाचार्य तथा गर्दभिल्लोच्छेदक कालकाचार्य ।
तीसरे कालकाचार्य का परिचय मिलता नहीं है।
चतुर्थ कालकाचार्य के विषय में इतिहास में इस प्रकार परिचय दिया है - छब्बीसवें युगप्रधानाचार्य आर्य भूतदिन के पश्चात् आर्य कालक सत्ताईसवें युगप्रधान आचार्य हुए। नागार्जुन की परम्परा में आगे. चलकर आर्य कालक हुए । उनका जन्म वीर निर्वाण संवत ९११ में दीक्षा ९२३ में, युगप्रधान पद ९८३ में और स्वर्गवास ९९४ में माना जाता है। श्वेताम्बर परम्परा में यही आचार्य कालक चतुर्थ कालकाचार्य के रूप में विख्यात है।
वल्लभीपुर (गुजरात) में आगम की अन्तिम वांचना हुई । उसमें आचार्य स्कन्दिल की माथुरी वाचना के प्रतिनिधि आचार्य देवद्धिगणी क्षमा श्रमण थे। उसी प्रकार आचार्य नागार्जुन की वल्लभी आगम वांचना के प्रतिनिधि कालक सूरि (चतुर्थ कालकाचार्य) थे । वल्लभीपुर में वीर निर्वाण संवत् ९८० में हुई । अन्तिम आगम वांचना में इन दोनों आचार्यों ने मिलकर दोनों वाचनाओं के पाठों को मिलाने के पश्चात् जो एक पाठ निश्चित किया उसी रूप में आज आगम विद्यमान हैं।.
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्पप्रदाय में थोड़े वर्षों पहले श्री पुण्यविजयजी म. सा. हुए थे जिनका स्वर्गवास मुम्बई में विक्रम संवत् २०२७ में हुआ था । ये मुनिराज महान् विद्वान् आगम मनीषी आगम प्रभाकर और श्रुतसेवी थे। करीब चालीस वर्ष तक आगमों के मूल पाठ का सम्पादन एवं संशोधन किया था। उनके द्वारा सम्पादित "पण्णवणा सूत्र " जैन आगम ग्रन्थमाला महावीर जैन विद्यालय ऑगस्ट क्रान्तिमार्ग बम्बई द्वारा प्रकाशित हुआ है। उसमें प्रस्तावना में तथा "जैन धर्म का मौलिक इतिहास" में लिखा है कि- एक वक्त शक्रेन्द्र महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकर भगवान् श्री सीमन्धर स्वामी के मुखारविन्द से निगोद की व्याख्या सुन रहा था। तब उसने भगवान् से प्रश्न किया था कि इस प्रकार निगोद की व्याख्या करने वाला कोई आचार्य भरत क्षेत्र में भी है ? तब उत्तर में सीमन्धर स्वामी ने फरमाया कि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org