________________ P.P Ad Gunanasun MS को लक्ष्य कर बलदेव ने श्रीकृष्ण से कहा- 'हे श्रीकृष्ण ! रुक्मिणी की ओर ध्यान दो। प्रबल शत्रु-सैन्य को देख कर वह भयभीत हो रही है। उसे किसी प्रकार धैर्य बँधाओ।' रुक्मिणो को रुदन करता देख कर श्रीकृष्ण का हृदय पर आया। उन्होंने धैर्य बंधाते हुए कहा- 'हे प्रिये ! इतनी चिन्ता किसलिये ? देखो, मैं क्षण भर में इन सुभटों को काल के गाल में पहुँचा देता हूँ।' फिर भी रुक्मिणी को विश्वास न हुआ। वह पूर्ववत् || 25 क्रन्दन करती रही। श्रीकृष्ण ने पुनः आश्वासन देना आरम्भ किया—'हे सौभाग्यवती ! तू मेरे असाधारण W, बल को देख, तब तुझे स्वतः विश्वास हो जायेगा।' इतना कह कर श्रीकृष्ण ने अपनी अंगूठी का हीरा निकाल | कर उसे चूर्ण कर डाला एवं उस चूर्ण से रुक्मिणी की हथेली पर एक माङ्गलिक स्वस्तिक बना दिया। इसके पश्चात् उन्होंने एक बाण से ही सात ताड़ के वृक्षों को ध्वस्त किया। जब ऐसी जाश्चर्यजनक शक्ति एवं अद्भुत पराक्रम देख कर भी रुक्मिणी का विलाप न रुका, तब श्रीकृष्ण ने जिज्ञासा की—'हे चन्द्रानने ! अपने विलाप का कारण तो प्रकट करो।' रुक्मिणी ने लज्जा से नत हो कर प्रार्थना की-'हे प्राणनाथ ! मैं समझ || गयी कि आप की शक्ति अद्भुत एवं अपूर्व है। किन्तु मेरे निवेदन पर ध्यान दें कि युद्धस्थल में मेरे पिता एवं भ्राता की प्राणहानि न हो, अन्यथा मुझे लोकापवाद सहना पड़ेगा। कृपया आप उनका वध न करें।' रुक्मिणी की ऐसी उक्ति सुन कर श्रीकृष्ण ने मुस्कराते हुए कहा-'हे देवी! तू अपनी चिन्ता का त्याग कर दे। मैं वचन देता हूँ कि तेरे पिता एवं भ्राता का वध नहीं करूँगा।' यह नाश्वासन पा कर रुक्मिणी की चिन्ता का निवारण हुआ। उसने प्रसन्नता के साथ कहा-'शत्रु दल से घिरी हई इस यद्ध-भभि में आप विजय लाभ प्राप्त करें।' रुक्मिणी एवं श्रीकृष्ण का वार्तालाप जब समाप्त हो गया, तब बलदेव ने कहा-'हे श्रीकृष्ण / चेदिनरेश शिशपाल स्वयं बड़ा बलवान है। मुझ में इतनी शक्ति नहीं कि मैं उससे युद्ध के लिए प्रस्तत होऊँ। केवल शिशुपाल को छोड़ कर उसकी शेष सेना को मैं क्षण-भर में परास्त कर दूंगा।' उत्तर में श्रीकृष्ण ने कहा'शिशपाल की चिन्ता मत करो। उसे तो मैं युद्ध में परास्त करूंगा एवं वह अब यमराज का आतिथ्य ग्रहण करेगा।' ऐसा कह कर रुक्मिणी को रथ में सुरक्षित कर उन धीर-वीर एवं साहसी वीरों ने शिशपाल की विराट सेना का सामना किया। मदोन्मत्त गजराज पर हमला करनेवाले सिंह की भाँति श्रीकष्ण Jun Guna