________________ PAMS हो रहे हो। अतएव हे भद्रजनों! तुमने जो वैराग्य की ओर से अपने को विमुख कर लिया है, वह उचित नहीं हुआ क्योंकि जीव को अपने पुण्य-कर्मों के अनुसार ही उत्तम फल प्राप्त होते हैं। जो जीव यथार्थ धर्म से अपने को वञ्चित कर लेता है, उसे जाति-कुल-रूप-सौभाग्य अथवा धन-धान्य तो प्राप्त होते ही नहीं, साथ ही वह विद्यायश-बल-लाभ आदि उत्तमोत्तम ऋद्धि-सिद्धि से भी वञ्चित हो जाता है / धर्म के प्रभाव से ही प्राणी को उत्तम शरीर, उच्च कुल, विद्या, धन, सुख एवं देव-पूजा जैसे सौभाग्य प्राप्त होते हैं, जिससे वह परोपकारी, दयाशील, सब का हितैषी तथा क्रोध रहित होता है। धर्म-विहीन प्राणी को ये सुख स्वप्न में भी प्राप्त नहीं होते। अतएव तत्व-ज्ञानियों को चाहिए कि वे सर्वप्रथम धर्म का ही स्वरूप समझ लें एवं पापों का परित्याग कर धर्म की की ओर मुक। हे ब्राह्मण-पुत्रों! यदि तुम यह कहो कि ये पर-भव की बातें सत्य नहीं हैं, तो मैं उपस्थित जन-समह के समक्ष हो इसका प्रमाण प्रस्तत कर देता हूँ। जिस प्रवर नामक ब्राह्मरण किसान का पूर्व में वर्णन किया जा चुका है, वृष्टि थमने पर जब वह अपने खेत की दशा देखने के लिए गया, तो खेती का सारा सामान अस्त-व्यस्त रूप से पड़ा हुआ था। रस्सी आधी तो कुचलो हुई थी. जब कि आधी विलुप्त थो। जब वह आगे बढ़ा, तो दो श्रृगाल मरे हुए पड़े थे। उन्हें देख कर उस ब्राह्मण को बड़ा क्रोध आया। उसने निर्दयतापूर्वक उन पर प्रहार किया एवं उनकी खाल खिंचवा कर उनमें भूसा भरवा दिया। उस ब्राह्मण ने उन भूसे भरी हुश ख लों को लाकर अपने घर के छप्पर को खूटी से कस कर बाँध दिया। वह खालें अब तक वहीं बँधी हैं। यदि विश्वास न हो, तो जा कर उन्हें आज भी देख सकते हो। प्रवर नाम का वह ब्राह्मण जिसने पूर्वभव में अनेक यज्ञादि किये थे, पर मोहवश अब अपने पुत्र की पत्नी के उदर से इस भव में उत्पन्न हुआ है / जब अपने घर को भूमि को देख कर उसे अपना जाति (पूर्व-भव) स्मरण हो आया, तब उसे बड़ा विषाद हुआ। वह सोचने लगा कि सब उसे क्या करना उचित है ? उसकी तो सारी आशायें ही नष्ट हो गयीं थीं। मोह के वशीभूत होकर वह अपने पुत्र का ही पुत्र हो गया है। यह सब पाप का ही तो फल है। अब वह अपनी पुत्रवधू को माता भला कैसे कह सकता है ? इस पकार की चिंता से वह पागल हो रहा था। अन्त में उसने निश्चय किया कि गगा बन कर रहने से ही लज्जा निभ सकेगी। इसलिये बाल्यकाल से ही उसने मौन धारण कर लिया। मौनावस्था में ही रह कर वह यता हो गया। हे बाह्मण-पत्रों। आज का Jun Gun Aaradhak Trust