________________ PP Ad Gunun MS. आज्ञा दें।' कुमार ने कहा- 'एवमस्तु / जब कभी मैं स्मरण करूँ, तब उपस्थित हो जाना।' ____ धूर्त वज्रदंष्ट्र ने देखा कि कुमार को गोपुर में प्रविष्ट हुए पर्याप्त विलम्ब हो चुका है, तो उसने प्रसन्न होकर अपने अनुजों से कहा-'यह सत्य समझो कि कुमार रक्षक दैत्य द्वारा अवश्य निहत हुआ है। चलो. आनन्दपूर्वक नगर को लौट चलें।' किन्तु जब वे प्रस्थान हेतु उद्यत हुए, तो गोपुर से कुमार निकलता हुआ दिखलाई। दिया। कुमार को जीवित अवस्था में एवं आभूषणों से सजे हुए देख कर उनका अभिमान चूर हो गया। किन्तु अपना कपट-भाव छिपा कर वे पुनः कुमार से मिले एवं सरल-हृदय कुमार को कालगुफा की ओर ले चले। कुछ दूर चल कर महाकपटी वज्रदंष्ट्र ने कहा- 'हे प्रिय भ्राताओं! इस गुफा में प्रवेश करनेवाले को सुखदायक इष्ट वस्तुओं की प्राप्ति होगी। अतएव तुम लोग कुछ काल तक यहीं विश्राम करो। मैं गुफा में से सिद्धियाँ प्राप्त कर शीघ्र लौटता हूँ।' वीरवर कुमार ने निवेदन किया- 'हे भ्राताश्री ! मुझे ही गुफा में जाने की अनुमति देवें।' वज्रदंष्ट्र ने प्रसत्रता के साथ उसे गुफा-प्रवेश की आज्ञा दे दी। कुमार निर्भय होकर गुफा में प्रवेश कर गया। भीतर प्रवेश कर कुमार ने प्रचण्ड घोष किया। फलतः वहाँ निवास कर रहे राक्षसेन्द्र की निद्रा भग्न हो गई। वह नेत्र लोहित कर सम्मुख प्रकट हो गया। उसने कुमार से कहा- 'अरे नराधम! इस पवित्र स्थान को भ्रष्ट करने का तुझ में साहस कैसे हो गया ? इस गुफा का रहस्य तू ने सुना नहीं था ? क्या यमराज के गृह हेतु प्रस्थान का निश्चय कर लिया है ?' कुमार ने भी उसो स्वर में कहा–'२ नीच! केवल वाक्यालाप से वीरता प्रकट नहीं होती। यदि तुझ में शक्ति है, तो युद्ध के लिए सनद्ध हो।' राक्षसेन्द्र विकृत मस्तिष्क का तो था ही। वह कुपित होकर कुमार पर प्रहार करने लगा। दोनों ने मल्ल युद्ध आरम्भ कर दिया। किन्तु जब राक्षस ने अनुभव कर लिया कि यह कोई सामान्य युवक नहीं है वरन् एक अजेय योद्धा है, तो वह उसके चरणों में गिर पड़ा। तत्पश्चात् उसने कुमार का दो चँवर, एक निर्मल छत्र, एक पवित्र रत्न, एक सुन्दर खड्ग, बस्वाभण राय भेंट में दिये। साथ ही यह भी निवेदन किया-'हे नाथ! मैं आपका दास हँ. आप मेरे स्वामी हैं।' कुमार चवरादि साथ में लेकर कालगुफा से बाहर निकल आया। कुमार के दृष्ट भ्राताबों ने देखा कि वह अब भी सरक्षित है एवं प्रसन्नता के साथ चला आ रहा है. तो वे Jun Guns