Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

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Page 170
________________ 167 PPA Gunnasun MS प्राणप्रिया रानी हुई।' नारायण ने यह भी कहा कि उसके पुण्य के प्रभाव से शम्भुकुमार नाम का जगद्वन्द्य पुत्र उसके ही गर्भ से उत्पन्न होगा। इस प्रकार उसे सन्तुष्ट कर श्रीकृष्ण ने उसे महल में भेज दिया, परन्तु उन्हें यह भय बना रहा कि कहीं सत्यभामा न आ जाए। उधर दर्पयुक्त सत्यभामा भी मान-श्रृङ्गारादि कर वन को चली। शताधिक सेवक उसकी पालकी का अनुगमन कर रहे थे। पथ में सामने से आती हुई जाम्बुवन्ती की पालकी मिली। सत्यभामा ने जिज्ञासा की'यह किसकी पालकी है ?' सेवकों ने बतलाया कि रानी जाम्बुवन्ती आ रही हैं। सत्यभामा ने प्रश्नोत्तर में अधिक समय व्यर्थ करना उचित न समझा। वह शीघ्रता से पति के समीप जा पहुँची। श्रीकृष्ण भी रति-गृह में बैठे हुए प्रतीक्षा कर रहे थे। रति-क्रीड़ा समाप्त होने पर पुण्य-बल से सत्यभामा के गर्भ में भी एक देव आ गया। श्रीकृष्ण ने एक अन्य हार सत्यभामा को दे दिया, जिसे पहिन कर वह सन्तुष्ट हो गई। सत्य है, भाग्य ही सर्वत्र फलता हैजाम्बुवन्ती को देवप्रदत्त हार मिला एवं सत्यभामा को सामान्य। इसके पश्चात् श्रीकृष्ण द्वारिका पधारे। नगर प्रवेश के समय बड़ा उत्सव सम्पन्न किया गया। जैसे-जैसे सत्यभामा एवं जाम्बुवन्ती के गर्भ की वृद्धि होने लगी, उसके साथ-साथ यादवों की धन-धान्य अर्थात् समृद्धि की वृद्धि हुई। एक दिन सत्यभामा को ज्ञात हो गया कि जाम्बुवन्ती गर्भवती है। उसने सोचा-'मेरे गर्भ में तो प्रद्युम्न का पूर्व-भव का अनुज आया है, उसके गर्भ में होगा कोई सामान्य जीव।' जाम्बुवन्ती का गर्भ पूर्ण हो चुका था। एक दिवस शुभ मुहूर्त एवं शुभ लग्न में दैदीप्यमान मणि सदृश ओजस्वी पुत्र उसके उत्पन्न हुआ, जिसके सर्वाङ्ग नयनाभिराम थे। ठीक उसी समय सारथी पद्मनाभ के सुदारक, महामन्त्री वीर के बुद्धिसेन तथा गरुडकेतु नाम के सेनापति के जयसेन नाम के पुत्र उत्पन्न हुए। इन तीनों कुमारों के साथ जाम्बुवन्ती का पुत्र वृद्धि प्राप्त करने लगा। चतुर्दिक उल्लासपूर्ण आयोजन अनुष्ठित किये गये। जिन-मन्दिरों में पूजा की गयी तथा राज्य के समग्र बन्दी मुक्त कर दिए गये। स्वजनों ने मिल कर बालक का नामकरण शम्भुकुमार किया। इसके पश्चात् सत्यभामा के भी एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नामकरण सुभानु हुआ। शुभ लक्षणों के धारक वे दोनों ही बालक क्रमानुसार वृद्धि पाने लगे। उनके सहास्य कौतुक, तोतली बोली एवं मधुर हाव-भाव से राज Jun Gun Auchak 167

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