Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

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Page 196
________________ 1263 PP Ad Gunun MS. / नष्ट को। वे जन्म-जरा-मृत्यु रहित सिद्धस्वरूप को प्राप्त हो गये। साथ ही शम्भुकुमार, भानुकुमार एवं || अनिरुद्धकुमार को भी मोक्ष की प्राप्ति हुई। गिरनार के पवित्र तिन शिखरों पर क्रम से प्रद्युम्नकुमार, शम्भुकुमार एवं अनिरुद्धकुमार का निर्वाण / हुआ। मुनियों के मोक्ष होने के दिवस से ही गिरनार की प्रसिद्धि 'सिद्धक्षेत्र' के नाम से हुई। सुर-असुर दोनों उनकी पूजा करने लगे। भगवान श्री नेमिनाथ एवं प्रद्युम्नकुमार के मुक्त होनेवाले स्थान पर इन्द्रादि देवों का आगमन हुआ। तत्पश्चात् देवों ने नृत्य-गीतादि का आयोजन कर मोक्ष-कल्याणक का उत्सव सम्पन्न किया। सिद्ध भगवान की श्रद्धापूर्वक पूजा कर वे अपने-अपने स्थान को चले गये। जिन्होंने निर्मल सिद्धि प्राप्त की, जिन्हें क्षुधा-तृषा-रोग-शोक आदि दोषों ने स्पर्श तक नहीं किया, जो जन्म-जरा-मृत्यु-वियोग-त्रास आदि से सर्वथा मुक्त हैं, देवगण जिनकी चरण-वन्दना करते हैं, वे केवलज्ञानी भगवान मङ्गलपूर्वक हमारे पापों का क्षय करें। जहाँ नारी-बन्धु की कल्पना नहीं, जहाँ रूप-वर्ण-स्थूल-सूक्ष्म की कल्पना नहीं, उस स्थान पर (मोक्ष स्थान) आश्रय ग्रहण करनेवाले मुनिगणों के आशीर्वाद से हमें सर्वदा सुख की उपलब्धि हो। यदुवंश के श्रृङ्गार, श्री नेमिनाथ भगवान, जिन्होंने तीर्थङ्कर पद लाभ किया, हमें शान्ति प्रदान करें मोक्षगामी प्रद्युम्नकुमार हमारी अभिवृद्धि करें। मोक्ष लाभ करनेवाले शम्भुकुमार तथा प्रद्युम्मकुमार के पुत्र अनिरुद्धकुमार भी, जिन्होंने अपने उत्कृष्ट गुणों के कारण अक्षय कीर्ति सम्पादित की, हमें अनिर्वचनीय आनन्द प्रदान करें। निवेदन-मैं व्याकरण, काव्य, तर्क, अलङ्कार तथा अलंकृत छन्दों से सर्वथा अनभिज्ञ हूँ। इस चरित्र की रचना मैं ने कीर्ति सम्पादन की आकांक्षा से नहीं की, अपितु पाप क्षय होने के उद्देश्य से की है। मेरा शास्त्र-पारङ्गत विद्वानों एवं परोपकारी भव्य पुरुषों से निवेदन है कि वे मुझ सदृश अल्प-बुद्धि के द्वारा रचना- | बद्ध किये हुए गुण-समुद्र कुमार प्रद्युम्न के पवित्र चरित्र को संशोधित कर सर्वसाधारण में विख्यात करें। ___परिचय–श्रीरामसेन नामक आचार्य काष्टा सङ्घ नदी तट नामक पवित्र स्थान में उत्पन्न हुए थे / उनके पद को सुशोभित करनेवाले रत्नकीर्ति आचार्य हुए। शिष्य परम्परा के अनुसार श्री लक्ष्मणसेन तथा गुणी भीमसेन सूरि हुए। उन्हों की चरण-कृपा से सोमकीर्ति सूरि ने इस रमणीक चरित्र की रचना की। भव्यजीवों को चाहिये कि वे भक्तिभाव से इसका अध्ययन करें। . Jun M 3 ak Trust 25

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