Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

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Page 173
________________ ___ मासावधि समाप्त होने पर श्रीकृष्ण राजसभा में जा पहुँचे। उन्होंने शंभुकुमार को प्रताड़ित कर कहा 270 P.P Aci Gurvalasuri MS जहाँ से तेरा नाम भी मुझे न सुनाई दे?' श्रीकृष्ण ने उसे ताम्बूल के तीन बीड़े दिये, जिन्हें खाकर वह राजसभा से बर्हिगमन कर गया। उस समय प्रद्युम्न ने पिता से जिज्ञासा की-हे तात ! शंभुकुमार का सभा में अब आगमन हो सकेगा अथवा नहीं ?' श्रीकृष्ण ने कहा- 'अवश्य सम्भव है ! यदि सत्यभामा स्वयं हथिनी पर आरूढ़ होकर उसके समीप जाये एवं लिवा लाये, तब ही वह आ सकता है अन्यथा नहीं।' उधर शंभुकुमार राजसभा से सीधे अपनी माता जाम्बुवन्ती के समीप आया। प्रद्युम्न भी विमाता जाम्बुवन्ती के महल में पहुँच गये एवं पिता की आज्ञा सुना दी। तब कुमार की आज्ञा के अनुसार वह सत्यभामा के उद्यान में गया एवं एक अत्यन्त रूपवती नारी का वेश धारण कर एकान्त स्थान में बैठ गया। जब सत्यभामा उद्यान भ्रमण के लिए निकली एवं एक रूपवती युवती को देखा, तो उसे घोर आश्चर्य हुआ। वह उसके समीप जाकरोंकहने लगी—'हे पुत्री! तू कौन है, इस निर्जन स्थान में क्यों बैठी है ?' युवती बोल उठी—'हे माता ! मैं एक राजकन्या हूँ। मैं अपने मातुल के यहाँ रहती थी। मेरे पिता मुझे लिवाने हेतु आये हुए थे। एक बड़ी सेना के साथ मैं पालकी में आरूढ़ होकर आ रही थी। रात्रि को इसी स्थान पर शिविर स्थापित हुआ। जब समस्त संगी जन निद्रा की छाँव में सो गये, तब मैं भी पालकी से उतर कर भूतल पर आ लेटी। निरन्तर यात्रा की क्लान्ति के कारण मुझे प्रगाढ़ निद्रा आ गयी। फिर न जाने मेरे कहार कब पालकी उठा कर चलते बने। प्रातःकाल जब मेरी निद्रा भङ्ग हुई, तो देखती हूँ कि न पिताजी हैं एवं न उनकी सेना। अब मैं विवश होकर यहाँ बैठी हूँ, इसके सिवाय भला कर भी क्या सकती हूँ ?' सत्यभामा उसके समीप बैठ गयी। वार्तालाप के सन्दर्भ में ज्ञात हुआ कि अभी वह कुमारी ही है। तब सत्यभामा बड़ी प्रसन्न हुई। वह सुभानुकुमार के साथ उसका विवाह करने के उद्देश्य से अपने महल में ले आई एवं यथासंभव उसकी देख-रेख करने लगी। उस ! नवागत राजकुमारी के लिए सुख की समस्त सामग्रियाँ उपलब्ध की गयीं। कुछ काल के उपरान्त ऋतुराज वसन्त का आगमन हुआ। वृक्ष नवीन कोपलों एवं पुष्पों से पल्लवित हो गये। भ्रमरों के गुअन एवं कोयलों की कुहूक से विरहिणी स्त्रियाँ सन्तप्त होने लगीं। सुहागिनों को उन्मत्तता Jun Gan Aaradhak Trust 270

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