Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

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Page 171
________________ परिवार में कोलाहल मचा रहता था। वे भद्र-वैशियों की पत्नियों के लिए खिलौना बन गये थे। प्रद्युम्न अपने अनुज शम्भुकुमार को शिक्षा दिया करता था एवं भानुकुमार अपने अनुज सुभानु को कला-कौशल सिखलाता था। कालान्तर में वे दोनों बालक भी अपनी-अपनी बाल्यावस्था को पूर्ण कर युवा हो गये। 268 एक दिन श्रीकृष्ण की सभा में एक विचित्र घटना हो गयी। अकस्मात् शम्भुकुमार एवं सुभानुकुमार का सभा में आगमन हुआ। वे सबका यथायोग्य अभिवादन कर अपने योग्य आसन पर जा विराजे। शम्भुकुमार प्रद्युम्न के निकट बैठा एवं सुभानुकुमार अपने अग्रज भानुकुमार के निकट बैठा। उन्हें देख कर समस्त सभाँ प्रसन्न हुई। लोग उनके मनोज्ञ व्यक्तित्व को देखने लगे। उस समय सभा के मध्य में द्यूत-क्रीड़ा चल रही थी। बलदेव पाण्डवों के साथ द्यूत (जुआ) खेल रहे थे। बलदेव ने इन नवागन्तुक कुमारों को भी द्यूत-क्रीड़ा में भाग लेने के लिए आमन्त्रित किया। किन्तु कुमारों ने यह कह कर विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया कि आप सदृश पूज्य महानुभावों के साथ द्यूत-क्रीड़ा में हम अक्षम हैं। फिर भी यदुवंशियों का अनुरोध प्रबलतर होता गया, अन्त में यह निश्चित किया गया कि ये दोनों कुमार परस्पर ही द्यूत खेलें, इससे इनकी योग्यता की परीक्षा भी हो जायेगी। वे दोनों कुमार भी अब उत्सुक हो गये! श्रीकृष्ण को निर्णायक बना कर वे उनके समक्ष द्यूत खेलने लगे। प्रथम दाँव एक कोटि मुद्राओं का लगा। जिसे शम्भुकुमार ने जीता। उस समय प्रद्युम्न ने कहा—'द्रव्य लेकर ही पुनः द्यूत का प्रारम्भ हो।' भानुकुमार ने सत्यभामा के यहाँ से एक कोटि मुद्रायें लाकर दे दी। अपने पुत्र की पराजय से सत्यभामा बड़ी लज्जित हुई। उसने अपना एक मुर्गा भेजा एवं यह कहलवाया कि यदि शम्भुकुमार इस मुर्गे को जीत ले, तो वह दण्ड स्वरूप उसे दो कोटि मुद्रायें देगी। शम्भुकुमार अपने अग्रज के निर्देश हेतु उसकी ओर देखने लगा। अनुज का अभिप्राय समझ कर प्रद्युम्न ने एक कृत्रिम मुर्गा बना दिया। वे दोनों मुर्गे परस्पर द्वन्द्व करने लगे। अन्त में शम्भुकुमार के मुर्गे ने सत्यभामा के मुर्गे को || परास्त कर दिया। इस विजय में दो कोटि मुद्रायें मिलीं, जिन्हें प्रद्युम्न ने याचकों में बँटवा दी। अब की बार / क्रोधित होकर सत्यभामा ने एक दुर्लभ एवं सुगन्धित फल भेजा एवं सङ्ग ही कहलवाया कि जो इस फल को जीत लेगा, उसे वह चार कोटि मुद्रायें देगी। प्रद्युम्न की सहायता से शम्भुकुमार ने वह फल भी जीत लिया। ___ यही नहीं सत्यभामा के भेजे हुए दो सुवर्ण-वस्त्र, हार, कुण्डल एवं कौस्तुभ मणि को भी शम्भुकुमार ने Jun Gun andako 268

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