Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

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Page 193
________________ 260 FP A Gunun MS सङ्ग मधुर सम्भाषण किया हो, वह दयालु हो कर सर्व जीव हितकारी उपदेश देने लगे। पूर्व में जिसका कार्य बलपूर्वक अन्य की कन्याएँ अपहरण करना था, वे इस मुनि अवस्था में पर-धन तथा पर-नारी को क्रमशः तृण एवं माता के समतुल्य समझने लगे। . इस प्रकार मुनि प्रद्युम्न ने दुःसह तप एवं चारित्र का पालन किया। यह कार्य धीर-वीर तथा बुद्धिमानों का है, कायरों का नहीं। वे शुद्ध बुद्ध पापरहित योगीन्द्र गिरनार पर्वत में एक ध्यान के योग्य वन में जा पहुंचे। उन्होंने सम्यग्दर्शन की शक्ति से मोहनीय कर्मों का विनाश किया। वे आम्र-वृक्ष के तले जन्तु-रहित शिला पर आसीन हुए तथा चित्त का निरोध कर ध्यान में मग्न हो गये। मुनिराज का धर्म-ध्यान स्थिर होता गया। क्रम-क्रम से उनकी कर्म-शुद्धि होती गयी। वे प्रमत्तादि गुण स्थानों से मुक्त होकर एवं चित्त का निरोध कर ऊपर की श्रेणी में जा पहुँचे। अष्टम अपूर्वकरण गुणस्थान का परित्याग कर अनिवृत्तिकरण में स्थिर हुए। उन्होंने षोडश कम प्रवृत्तियों का क्षय किया-द्वितीय भाग में प्रत्याख्यानावरणी-क्रोध, मान, माया, लोभ तथा अप्रत्याख्यानावरणी-क्रोध, मान, माया, लोभ उक्त आठ प्रकृतियों का घात किया, तृतीय में नपुंसक वेद प्रकृति का, चतुर्थ में स्त्री-वेद प्रकृति का, पश्चम में हास्य-रति-अरति-शोक-भय-जुगुप्सा तथा पुरुष-वेद का, एवं षष्ठ, सप्तम, अष्टम में क्रम से संज्वलन-क्रोध-मान-माया का उन्होंने विनाश किया। तत्पश्चात् सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान में संज्वलन लोभ प्रकृतिका घात किया तथा द्वादश क्षीण कषाय गुणस्थान में सम्पूर्ण घातिया कर्म विनष्ट हो गये। तदनन्तर आदि-अन्त रहित अज्ञान हीन तधा सर्वाङ्ग मनोज्ञ त्रयोदश गुणस्थान में प्रवेश किया, जिसका कभी विनाश सम्भव नहीं। मुनि प्रद्युम्न ने लोकालोक को प्रकाशित करनेवाले सर्वोत्तम केवलज्ञान का लाभ किया। यह ज्ञान आत्म-हितचिन्तक तथा इन्द्रिय अगोचर सुख का कारण है। केवलज्ञानरूपी सूर्य के उदय होते ही एक छत्र, दो चँवर तथा एक मनोहर सिंहासन-ये वस्तुएँ प्रगट हुईं। कुबेर ने पूर्ण भक्तिभाव से ज्ञान-कल्याणक के लिए गन्धकटी का निर्माण किया। ____ मुनिराज प्रद्युम्न के केवलज्ञानी होने का सुसम्वाद चतुर्दिक विस्तारित हो गया। उनके दर्शन के लिए | असुर जाति के देव, इन्द्रादि विमानवासी देव, सूर्य आदि ज्योतिषी देव, किन्नर, व्यन्तर देव आदि गिरनार पर्वत पर जा पहुँचे। श्रीकृष्ण आदि यदुवंशी तथा उनके सङ्ग अनेक विद्याधर तथा भूमिगोचरी राजा आये। Jun Gun Aaradhak

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