________________ करें।' श्रीनेमिनाथ ने कहा—'यह प्रस्ताव उचित नहीं। किन्तु इस सिंहासन पर रखे हुए मेरे पग को उठा 274 कटि कस कर उन वीर शिरोमणि का पग हटाने लगे। लक्षाधिक प्रयत्न करने पर भी पग तिल-मात्र भी न हट सका। जब समस्त शक्ति लगाने पर भी असफल रहे, तब श्रीकृष्ण खेद-खिन्न हो गये। उन्हें क्रोध भी आया, पर उसे शमित कर वह कहने लगे—'देखा, आप लोगों ने हमारे भ्राता की अपूर्व शक्ति। इनके बल का थाह मण्डली के साथ वहाँ से प्रस्थान किया। ___महल में आने पर श्रीकृष्ण की चिन्ता अत्यधिक बढ़ गई। वे सोचने लगे जब श्री नेमिनाथ में इतनी शक्ति है, तो वे किसी-न-किसी दिन मेरा राज्य भी हस्तगत कर लेंगे। श्रीकृष्ण ने तत्काल एक ज्योतिषी को बुलवाया एवं श्री नेमिनाथ का वृत्तान्त पूछा। ज्योतिषी ने बतलाया कि आप की चिन्ता निरर्थक है। श्री नेमिनाथ को राज्य का लोभ नहीं है। वे राज्य का परित्याग कर दीक्षा लेंगे एवं गिरनार पर्वतं पर जाकर मोक्ष प्राप्त करेंगे। वसन्त का आगमन हो चुका था। उद्यान में कोयल की कूक सुनाई देने लगी थी। श्रीकृष्ण वन-क्रीड़ा के लिए प्रस्तुत हुए, किन्तु प्रस्थान के पूर्व उन्होंने अपनी रानियों को श्रीनेमिनाथ के सम्बन्ध में कुछ समझाया। तत्पश्चात् वे गज पर आरूढ़ होकर अपने सेवकों के साथ उद्यान में चले गये। कुछ घड़ी उपरान्त रुक्मिणी, सत्यभामा आदि रानियाँ श्री नेमिनाथ के समीप पहुँची। उन्होंने कहा'हे जिनराज ! आपके भ्राता कब के वन-क्रीड़ा के लिए गये हैं, आपको भी चलना चाहिये।' श्री नेमिनाथ की अनिच्छा रहते हुए भी भावजें उन्हें वन में लेकर गईं। तब तक श्रीकृष्ण क्रीड़ा कर चुके थे। जब उन्होंने देखा कि श्री नेमिनाथ के आगमन का समय हो गया है, तब वे किसी अन्य उद्यान में चले गये। उनके प्रस्थान के उपरान्त रानियाँ श्री नेमिनाथ के संग क्रीड़ा करने लगीं। केशर, चन्दन आदि की पिचकारियाँ चलीं। 174 सुन्दरी भावजों ने अपने प्रेमालाप से देवर श्री नेमिनाथ का चित्त हर्षित कर दिया। तत्पश्चात् श्रीकृष्ण की उन रानियों ने दीर्घावधि तक जल-क्रीड़ा की। श्री नेमिनाथ जब वापिका से बाहर आये, तब उन्होंने अपनी गीली il धोती निचोड़ने के लिए जाम्बुवन्ती से अनुरोध किया। किन्तु वह व्यङ्ग के संग कहने लगी-'मैं नारायण Jun Gun ancha Trust