________________ 23 PP.AC.Gunratnasuri.MS. | रहते थे। बन्दीजन स्तुतिमय वाक्यों एवं माङ्गलिक शब्दों से उसकी जय-जयकार मनाते थे। - इसलिये सत्पुरुषों को चाहिये कि वे पुण्य-फल का प्रभाव देख कर धर्म का संग्रह करें। धर्म का ही प्रभाव था कि प्रद्युम्न को समस्त निधियाँ उपलब्ध हो गयीं। विश्व की समग्र विभूतियाँ धर्म पालन से प्राप्त हो || सकती हैं। पाप तो दुःख का कारण है। उससे रात्रि-दिवस चिन्ता बनी रहती है। पाप में प्रवृत्त मनुष्य सदा रोग-शोक से सन्तप्त रहता है। उसे स्थान-स्थान पर तिरस्कार भी सहना पड़ता है। - पूर्वोपार्जित पुण्य के फल से कुमार प्रद्युम्न ने इन्द्रिजन्य सुखों का जो अनुभव किया, उसका वर्णन करना बृहस्पति के लिए भी कठिन है। अतएव भव्य जनों को पुण्य-सञ्चय के लिए जैन-धर्म का निरन्तर तनमन से पालन करना चाहिये। त्रयोदश सर्ग नारायण श्रीकृष्ण द्वारिका में निष्कण्टक राज्य कर रहे थे। कौरवों एवं पाण्डवों का महाभारत भीः समाप्त हो चुका था। प्रतिनारायण जरासन्ध का वध कर श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र प्राप्त कर लिया था। उपरोक्त घटनाओं के पश्चात् उनके शासन काल में जो प्रमुख घटनायें घटीं, उनका वर्णन हम कर रहे हैं___एक दिवस की कथा है, यादवों के मध्य श्रीकृष्ण राजसभा में विराजमान थे। बलदेव तथा प्रद्युम्न भी सभा में उपस्थित थे। उसी समय श्री नेमिनाथ अपने मित्रों के साथ पधारे। उनके सम्मान में समस्त सभा खड़ी हो गयी। श्रीकृष्ण ने उन्हें उत्कृष्ट सिंहासन दिया। सब लोग क्रम से अपने-अपने स्थान पर बैठ गए। प्रसंम्वत्र सुभटों के बल की चर्चा छिड़ गयी। किसी ने वसुदेव की शक्ति का वर्णन किया,तो किसी ने पाण्डवों की। एक में कहा-"कुमार प्रद्युम्न ही सब से अधिक शक्तिशाली हैं। किसी ने शम्भुकुमार एवं भानुकुमार की कीर्ति गायी, किसी ने श्रीकृष्ण की, किसी ने बलदेव की प्रशंसा की। तात्पर्य यह कि सब ने अपने-अपने मन की बात कही। किन्तु बलदेव ने असहमति में झीश डुलाते हुए कहा-'अरे अल्पज्ञ ! तुम सब किनकी प्रशंसाकार रहे हो? जहाँ भावी तीर्थङ्कर भगवान श्री नेमिनाथ विराजमान हों, वहाँ अन्य वीरों की प्रशंसा कदापि वांछनीय नहीं है। अन्य शूरवीरों में एवं इनमें राई-पर्वत तुल्य अन्तर हैं। बलदेव द्वारा अपनी प्रशंसा सुन कर श्री नेमिमाथा मुस्करा रहे थे। उन्हें मुस्कराते देख कर श्रीकृष्ण ने उनसे कहा- 'आइये, हम दोनों यहीं मन-युख। Jun Sun Andhak Trust