Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

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Page 187
________________ 184 PAP Ad Guntasun MS मलीन कर रुदन करने लगी। रक्त वर्ण संध्या नष्ट होने लगी। संध्या के बीत जाने पर चतुर्दिक अन्धकार छा गया / क्रम से तारागण के दर्शन होने लगे। कुछ काल पश्चात् कुमुदिनी को प्रफुल्लित करते हुए चन्द्रदेव प्रकट हुए। पर जिन रमणियों के पतिदेव विदेश में थे, उनके लिए वह रात्रि बड़ी विकट थी। संयोगिनी स्त्रियों ने श्रृङ्गार करना, पति के अपराध से कोप धारण करना तथा सम्वाद-प्रेषक दासियों को भेजना-ये कार्य आरम्भ कर दिये। क्रम से रति-क्रीड़ा आरम्भ हुई। कुछ लोग क्रीड़ा में संलग्न हुए एवं कुछ लोग इस इन्द्रिय सुख को निस्सार समझ कर विरक्त हुए। अनेक लोगों की विरक्ति का कारण यह भी था कि जब साक्षात् कुबेरपुरो सदृश द्वारिका ही नष्ट हो रही है, तो भला कौन-सा सांसारिक सुख चिरस्थायी होगा ? क्या कंस, जरासंध सदृश प्रचण्ड महावीरों को निहत करनेवाले नारायण श्रीकृष्ण की द्वारिका भस्मीभूत हो जायेगी ? यह आश्चर्य की वस्तु नहीं तो और क्या है। सत्य है, संसार का वैभव जल के बुदबुदे तथा इन्द्रजाल के सदृश है / मानव देह रोगों का निवास है, नारियाँ दोषों से पूर्ण हैं, धन अनर्थ का कारण होता है। मित्रता का स्थिर होना कदापि सम्भव नहीं, संयोग के पश्चात् वियोग निश्चित है। यह समझ कर मनुष्यों को तपोनिधियों की सेवा करनी चाहिये एवं जिन-दीक्षा ग्रहण कर निर्ग्रन्थ मुनि हो जाना चाहिये / चन्द्रदेव ने भी रात्रि से सम्बन्ध त्यागा। सूर्य के उदय के संग रात्रि समाप्त हुई एवं चन्द्रमा अस्त हो गया। कुक्कुटों ने प्रभात के आगमन की सूचना दी। गन्धर्वो ने गान प्रारम्भ किया तथा बन्दीजनों की जय-ध्वनि होने लगी। एक विराट कोलाहल से सब की निद्रा भङ्ग हुई। अन्धकार को चीर कर सूर्यदेव उदयाचल पर आ गये थे। पर्वत के ऊपरी भाग पर सिन्दूर वर्ण तथा सौम्य रूप बाल सूर्य ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो वह भविष्य में होनेवाली दुर्घटना से आशङ्कित हो। . पञ्चदश सर्ग ... एक दिवस यादवों की सभा बैठी थी। नारायण श्रीकृष्ण सिंहासन पर विराजमान थे। सामन्तों, मन्त्रीगण, विद्याधरों तथा बलभद्रादि राजाओं से घिरे हुए श्रीकृष्ण सूर्य सम तेजस्वी प्रतीत हो रहे थे। उनकी आमरणयुक्त देहयष्टि की शोभा अवर्णनीय हो रही थी। उनके हृदय-पटल पर कौस्तुभ मणि शोभा पा रही थी एवं मस्तक पर छत्र सुशोभित था। विभिन्न प्रकार की कला तथा विनोद से कलाकार उनका मनोरञ्जन कर रहे Jun Gun ar or Trust 184

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