________________ P.P.AC.Gurranasuri MS. कर अग्नि प्रज्वलित कर दी एवं वस्त्र मोढ़ा कर उनका शीत-निवारण करने लगी। वह प्रातःकाल तक उनकी वथावृत्य करती रही। जब मुनिराज का ध्यान भङ्ग हुआ, तो उन्होंने कहा-'हे पुत्री लक्ष्मीवती! कुशल तो है?' अपना नया नाम सुन कर धीवरी ने विचार किया कि योगीन्द्र क्या कहते हैं, यह सुनना चाहिए ? जैन // 122 शासन को धारण करनेवाले साधु तो कभी असत्य नहीं बोलते। विचार करते ही उसे मूछी आ गयी एवं जाति-स्मरण हो माया। सचेत होने पर उसने मुनिराज से प्रार्थना की-'हे योगीश्वर ! मैं किस निम्न दशा में आ पहुँची ? कहाँ पूर्व में ब्राह्मण की पर्याय थी एवं कहाँ लब धीवरी हूँ। आप की निन्दा कर मैं ने जो भारी पाप अर्जित किया था, उसी का यह फल भोग रही हूँ। अब मुझे क्षमा कर दीजिये। वह धर्म मुझे सुनाइये, जिससे इस पाप से मेरी मुक्ति हो।' विलाप करती हुई धोवरी को सान्त्वना देते हुए मुनिराज ने कहा-'हे पुत्री! वृथा सन्ताप मत करो, क्योंकि यह संसार ही दुःख का कारण है। अतएव अब काल व्यर्थ न गवा कर जिनेन्द्र भगवान के धर्म को धारण करो। तू पूर्व-जन्म के पापों के कारण ही निन्द्य कुल में उत्पन्न हुई है। अब तुम गृहस्थ-धर्म में अनुरक्त होकर अहंत देव द्वारा उपदेशित जैन-धर्म का पालन करो।' मुनि महाराज ने सम्यक्त्व सहित द्वादश प्रकार के धर्म उस धीवरी की समझाये। तत्पश्चात परम दयाल मुनिराज तपस्या हेतु गमन कर गये एवं धीवरो जिन-धर्म के पालन में अहर्निश सनद्ध रह कर कुछ काल तक उसी कुटिया में रही। कालक्रम से वह वाक्षाकौशल नगरी में गयी। वहाँ जिनेन्द्र भगवान के मन्दिर में उसे धर्मपालनो नाम की अर्जिका मिली। अर्जिका ने धीवरी को बहुविधि धर्मोपदेश सुनाया। अब तो वह धर्म-ध्यान में पूर्णरूपेण तन्मय हो गयी। एक दिन वह धीवरी पूर्वोक्त अर्जिका के साथ राजगृह नगर में गयी। उसने जिन-मन्दिर में जाकर प्रणाम किया। नगर के बाहर ही गोपुर था। अर्जिका तो गोपुर की गुफा में प्रवेश कर ध्यानस्थ हो गयी एवं धीवरी गुफा के बाहर ही जप-ध्यान करने लगी। दैवयोग से रात्रि में एक भयावह व्याघ्र वहाँ माया एवं उसने धीवरी का भक्षण कर लिया। जिन-धर्म के प्रभाव से ध्यान-योग में उसकी मृत्यु हुई। उस समय वह व्रतों का भी पालन कर रही थी, अतएव देह त्याग कर सोलहवें स्वर्ग में इन्द्राणी हुई। पुण्य-प्रभाव से उसने वहाँ चिरकाल तक सुखों का उपभोग किया! अन्त में धीवरी के जीव ने कुण्डनपुर के राजा भीष्म की पुत्री के रूप में जन्म लिया। उसका नाम बा Jun Gan Aaradhak Trust 122