________________ dd 54 आमंत्रित अन्य विप्रगण भी सत्यभामा के प्रासाद में आ पहुँच। वे एक विप्र किशोर को भोजन की याचना करते हुए देख कर कहने लगे-'अरे अभागे विप्र! तू महारानी से भोजन की याचना करता है ? ये जिस पर कृपा कर दें, उसका तो भाग्योदय हो जाता है। तू रत्न, सुवर्ण, भूमि, धन, गोधन अथवा सुन्दरी कन्याओं की याचना 244 क्यों नहीं करता ?' विप्र वैशधारो कुमार ने चतुरता से कहा-'हे द्विजगण ! आप सब मुझे मूर्ख क्यों कहते हो ? संसार को समस्त निधियों की याचनायें भोजन के लिए ही की जाती हैं। इसलिये मैं ने महारानी से भोजन को याचना की है। हे देवो सत्यभामा! अपने पुत्र की मङ्गल कामना के लिए मुझे भरपेट स्वादिष्ट भोजन करवा दो।' फलस्वरूप सत्यभामा भी प्रमुदित हो गई। उसने अपने सेवकों को आदेश दिया-'इस विवेकी द्विज कुमार को मेरी पाकशाला में ले जाकर इच्छा भर भोजन करा कर तृप्त कर दो।' किन्तु द्विज वेशधारी कुमार ने कहा - 'हे कल्याणी ! मैं इन मूर्ख एवं नीच द्विजों के साथ भोजन नहीं करूँगा। जो पाखण्डी क्रियाहीन एवं वेदादि से अनभिज्ञ हैं, उनके साथ भोजन करना मेरे लिए कदापि सम्भव नहीं है / हे देवी! इन पतित द्विजों को भोजन कराने से तेरे अभिप्राय को क्या सिद्धि होगी?' सत्यभामा वाचाल द्विज किशोर की गर्वोक्ति सुन कर भी उत्फुल्ल हुई। उसने आदेश दिया-'इस वेदज्ञ द्विज को आदरपूर्वक भोजन कराने के लिए लेकर जाओ।' वहाँ जाकर द्विज-वेशधारी कुमार अग्रगण्य आसन पर आसीन हो गया। जब अन्य द्विजों ने उसे प्रधान आसन पर विराजमान देखा, तो वे अत्यन्त कुपित हुए। उन्होंने कहा- 'यह तो बड़ा ही कलहप्रिय है। न तो इसकी जाति ज्ञात है एवं न कुल। साथ ही गोत्र, प्रवरादि का भी निश्चय नहीं है। ऐसी स्थिति में इसके साथ भोजन कैसे किया जाए ?' यह विचार कर वे द्विजगण अन्य भोजन-कक्ष में चले गये। किन्तु वहाँ भी वही विन कुमार प्रधान भासन पर आसीन दृष्टिगोचर हुजा। अब तो द्विजों के क्रोध का पारावार न || रहा। उन सभी वेद-विशारद विप्रों ने निश्चय किया-'इसे अवश्य प्रताड़ित करना चाहिये / यह विप्र-द्वेषी है, || इसका तो वध करने पर भी पाप का भागी नहीं होना पड़ेगा।' विनों का ऐसा निश्चय सुन कर वह विप्रकुमार || कहने लगा- 'हे विप्रों! तुम लोग तो वेदज्ञ बनते हो. पर तुम में द्विजत्व के लक्षण कहाँ हैं ? जिन व्यक्तियों द्वारा यज्ञ में अश्व, मनुष्य, राजा, माता-पिता तक हवन कर दिये जाते हैं एवं वे उस दुष्कृत्य को पुण्य या धर्म कह कर व्याख्या करते हैं, उन्हें हम ब्रह्म-ज्ञानी कैसे कह सकते हैं ? जिस धर्म में मधु-मद्य-माँस Jun Gun Arad