Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

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Page 152
________________ PETI अब भानुकुमार का विवाह हो रहा है. इसलिये सत्यभामा ने मेरे केश लेने के लिए अपनी दासियाँ भेजी हैं। प्रतिज्ञा के अनुसार मैं केश देने के लिए बाध्य हूँ। एक बार मैं केश देने के भय से नगर के बाहर जाकर प्राण-त्याग करना चाहती थी कि नारद मुनि आ गये एवं उन्होंने मेरे पुत्र ( प्रद्युम्न ) के सकुशल जीवित होने || 246 तथा निकट भविष्य में आगमन की घोषणा की। इसलिये मैं ने प्राण-त्याग की इच्छा का परित्याग कर दिया था। किन्तु मैं अब तक न तो अपने प्रिय पुत्र का कमलवत् मुख देख सकी एवं न हो प्राण-त्याग कर सकी' सच मानो तो मैं दोनों ओर से ही भ्रष्ट हो गयी।' ___क्षुल्लक को अपना दुखड़ा सुना कर वह फूट-फूट कर रुदन करने लगी। कुमार माता को समझाने लगा। उसने आगन्तुक दासियों के समक्ष विक्रिया प्रारम्भ की। कुमार ने माया से एक कृत्रिम रुक्मिणी की रचना को। उस कृत्रिम रुक्मिणी को उसने सिंहासन पर आसीन कर दिया एवं वास्तविक रुक्मिणी को अन्तर्ध्यान कर स्वयं कंचुकी के वेश में सिंहासन के समक्ष खड़ा हो गया। नापित के साथ सत्यभामा की दासियाँ आ चुकी थीं। वे कहने लगों- 'हे माता ! इसमें हमारा किंचित् भी दोष नहीं है। हम तो आप की सेविका हैं ! जो कुछ भी हो रहा है, वह महारानी सत्यभामा की आज्ञा से हो रहा है। उन्होंने हमें आप की शिस्खा (चोटी) लाने के लिए भेजा है।' कृत्रिम रुक्मिणो ने कहा-'एवमस्तु ! तुम लोगों को भयभीत होने का कोई कारण नहीं। मैं प्रतिज्ञानुसार स्वयं अपनी शिखा देने के लिए प्रस्तुत हूँ।' दसियों ने हर्षित होकर दधि, दूब, अक्षत नादि मांगलिक द्रव्यों को रुक्मिणी के समक्ष रख दिया एवं नापित अपनी छुरिका लेकर आगे बढ़ा। मायामयो रुक्मिणी ने अपना केश-विन्यास उन्मुक्त कर दिया एवं नापित से कहा-'लो, निर्भय होकर मेरी शिखा (चोटो) काट लो। यह अनुमति पाकर मापित उसकी के शराशि पर छुरिका चलाने लगा एवं दासियाँ। मङ्गल गीत गाने लगों। उसी समय एक विचित्र घटना हुई। नापित का हाथ बहक गया एवं उसने रुक्मिणी | की शिखा के स्थान पर स्वयं अपनी नासिका का अग्रभाग काट लिया। फिर भी राजाज्ञा की अवहेलना के | भय से उसने बारम्बार प्रयास किया एवं फलतः उसकी अँगुलियाँ तथा सङ्ग में बाई दासियों के नासिका कर्ण आदि क्षत-विक्षत हो गये। पर कुमार की माया से उन्हें कष्टकाशात नहीं हुमा, उनके पित्त पर तो विभ्रम चाया हुषाबाचे दार्षीि तथा नापित रुक्मिणी को haiमा करते रहे उन्हें कविश्री प्रतिक्षा-निर्वाह || Jun Gun arada 246.

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