Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

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Page 158
________________ PAPA C 155 MS मैं हर कर ले जाऊँ, तो आप सब के जीवित रहने अथवा न रहने का क्या प्रयोजन ? यदि आप में शक्ति हो, तो मेरे बन्धन से रुक्मिणी को मुक्त करा लें। आपकी समस्त सेना के एकत्रित हो जाने पर भी मैं बिना युद्ध किये न रहूँगा। न तो मैं चोर हूँ एवं न व्यभिचारी, पर आप की शक्ति की परीक्षा के लिए रानी रुक्मिणी | को लिए जा रहा हूँ।' विद्याधर-पुत्र के कटु वाक्यों से यादवों की सभा में कोलाहल मच गया। बलदेव मूञ्छित होकर गिर गड़े। किंतु शीघ्र ही उनकी मूर्छा की निवृत्ति हुई। उनका सर्वाङ्ग क्रोधाग्नि से प्रज्वलित हो उठा। उस समय पाण्डव भीम एवं अर्जुन भी उत्तेजित होकर उठने लगे। किन्तु युधिष्ठिर ने संकेत करते हुए समझाया कि युद्ध आरम्भ हो जाने दो, वहीं उनकी वीरता की परीक्षा हो जायेगी। इस प्रकार कितने ही राजपुत्र अपने खड्ग तथा अस्त्र-शस्त्र चमकाने लगे। क्रोध से विह्वल यादवों का तेज देखने योग्य था। कुछ विद्वान सभासंद लोग यह भी कहने लगे कि तुम्हारे सदृश सामान्य वीरों से उस विद्याधर-पुत्र का परास्त होना सर्वथा असम्भव है। अतएव रणभेरी का नाद हो, जिससे युद्ध की घोषणा सर्व-साधारण पर प्रकट हो जाए। अतः रणभेरी बजी। समस्त वीर एकत्रित हुए। युद्ध की सम्भावना में आनन्दातिरेक से वे इतने फूले कि उनके वक्ष के कवच तक भी टूटने लगे। समस्त सेना राजमहल के विस्तृत प्रांगण में एकत्रित हुई। तत्पश्चात् महारथियों के नेतृत्व में सेना वहाँ से आगे बढ़ी। आगे-आगे गजराजों का समूह चला, मानो प्रलयकाल के मेघ जा रहे हों। उनके मदं की वर्षा से भूमि पङ्कयुक्त हो रही थी। तदुपरान्त द्रुतगामी अश्व-समूह चला, जिसका मध्य भाग दिव्य शस्त्रों से सुशोभित हो रहा था। इसके पश्चात् अपनी लम्बी-लम्बी ध्वजायें फहराते हुए रथों का समूह चला। सबसे अन्त में कवचादि से सुशोभित समस्त पदाति सेना बढ़ चली। मार्ग में विभिन्न प्रकार के अपशकुन होने लगे, फिर भी योग्य-अयोग्य का विचार किये बिना ही यादवों एवं पाण्डवों की वह संयुक्त सेना आगे बढ़ती ही गई। उधर प्रद्युम्न ने अपनी माता को विमान पर बैठा लिया। नारद को देख कर रुक्मिणी बड़ी प्रसन्न हई। 155 उसने भक्तिपूर्वक नारद को नमस्कार किया। नव-वधू ने भी अपनी सास को प्रणाम किया। कुमार सब को आकाश में ही स्थिर कर स्वयं भतल पर उतरा। उसने अपने विद्याबल से यादवों के सदृश रथ, गज, अश्व तथा | पदातिक अर्थात् चतुरङ्गिणी सैन्य की रचना करनी। श्रीकृष्ण का सेना में जिस प्रकार केशवादि नाम के Jun Gun A R

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