________________ (156 P.P.Ad Gunanasuti MS I तत्काल हा १रुण-बाण का प्रयाग किया। फलत मूसलाधार वृष्टि हान लगा। आन-बाण का समस्त प्रमाव नष्ट हो गया। इसके पश्चात् श्रीकृष्ण ने वायु-बाण का प्रयोग किया; जिससे पदाति, अश्वारोही, गजारूढ़ एवं रथी समस्त तृणवत व्योम में विचरण करने लगे। वायु की प्रचण्ड गति अप्रतिहत करने के उद्देश्य से कुमार ने तामस-बाण का स्मरण किया, जिससे समस्त रणभूमि अन्धकारमय हो गयी। इस प्रकार दोनों पिता-पुत्रों में विद्याधरों एवं देवों को भी आश्चर्यचकित करनेवाला संग्राम हुआ। श्रीकृष्ण ने जितने भी कठिन शस्त्रों का प्रयोग किये, वे सब व्यर्थ सिद्ध हुए। अपने अमोघ बाणों के व्यर्थ हो जाने से महाराज श्रीकृष्ण आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने सोचा-'यह अजेय शत्रु बिना मल्ल-युद्ध के पराजित नहीं किया जा सकता। अतएव अब मल्ल-युद्ध ही करना चाहिये।' ऐसा निश्चय कर वे बाहु-युद्ध की कामना से रथ से नीचे कूद पड़े। उनके चरण प्रहार से पृथ्वी में गढ्ढे पड़ गये, पर्वतों की सन्धियाँ शिथिल पड़ गयीं। कुमार ने भी देखा कि महाराज श्रीकृष्ण मल्लयुद्ध के लिए प्रस्तुत हैं, तो वह भी रथ से उतर कर उनके सम्मुख आ गया। इन दोनों उद्भट योद्धाओं को मल्ल-युद्ध के लिए प्रस्तुत देख कर रुक्मिणी ने नारद मुनि से कहा-'हे प्रभु ! अब विलम्ब करना उचित नहीं होगा, क्योंकि पिता-पुत्र के मल्ल-युद्ध से सर्वत्र बड़ी हानि होगी।' तब नारद तत्काल ही विमान से भमि पर उतर कर युद्ध के लिए प्रस्तुत दोनों महावीरों के मध्य में आ पहुँचे। उन्होंने कहा-'हे माधव (श्रीकृष्ण) ! अब तुम अपने पुत्र के साथ ही युद्ध करने लगे? इसने अपना अब तक का जीवन विद्याधर राजा कालसम्वर के यहाँ बिताया है। अब यह षोडश लाभ एवं अनेक विद्यायें प्राप्त कर अपने पितगृह में स्वजनों से मिलाप के लिए आया है। अतएव इसके साथ संग्राम करना कदापि उचित नहीं होगा।' श्रीकृष्ण को समझा कर नारद प्रद्युम्न से कहने लगे—'हे कुमार ! तुम अपने पिता के सङ्ग यह क्या व्यवहार कर रहे हो? तुम्हें समस्त कौतक त्याग कर पुत्र के कर्तव्य का पालन करना चाहिये।' नारद के हितोपदेश से श्रीकृष्ण स्नेह-विह्वल होकर प्रद्यम्न की ओर अग्रसर हुए। पुत्र का सम्मिलन तथा सेना के विनाश से उनके हृदय में हर्ष एवं शोक दोनों ही व्याप्त थे। फिर भी पुत्र के निकट पहुँच कर उन्होंने कहा- 'हे पुत्र ! शीघ्र आओ एवं मुझे अपना प्रगाढ आलिङ्गन करने दो।' कुमार भी मायावी वेश त्याग कर जनक के चरणों में लोट गया। किन्तु श्रीकृष्ण ने तत्काल ही उसे उठा कर अपने वक्ष से लगा लिया। उस समय सुख-संयोग में कुछ काल तक दोनों के नेत्र Jun Gun Raraca Trust