________________ PPA Gunun MS भर. आये। उन्हें देर तक ऐसी स्थिति में देख कर नारद ने कहा-'हे वीरों! यहाँ बिना कार्य के क्यों व्यथ खड़े हो / अब द्वारिका चलो, जहा नगर के समस्त नर-नारी तुम्हारे दर्शन हेतु उत्सुक हो रहे होंगे। अतः यथाशीघ्र नगरी में प्रवेश करो।' तब श्रीकृष्ण ने विषादपण वाणी में कहा-'मैं तो सेना रहित हो चुका हूँ। 160 यह उत्तम हुआ कि मेरा पुत्र से मिलन हो गया। अब तो नगर में दो ही व्यक्ति शेष रह गये हैं-मैं एवं तीर्थङ्कर भगवान नेमिनाथ। अब आप ही बताइये कि नगर में कौन-सी शोभा होगी, न सेना रही, न छत्र रहा?' श्रीकृष्ण का ऐसा विषादपूर्ण कथन सुन कर नारद कहने लगे—'हे नारायण ! प्रद्युम्न ने इस संग्राम में किसी वध नहीं किया है। जिसे अपने शत्र का वध करना भी प्रिय नहीं है, वह भला अपने पिता की सेना को कैसे विनष्ट करेगा ? आप सेना की मृत्यु का किञ्चित् भी दुःख न करें। आप की समस्त सेना जीवित है।' श्रीकृष्ण को महान् आश्चर्य हुआ एवं उन्होंने जिज्ञासा की—'यह आप क्या कहते हैं ?' नारद ने इस प्रश्न का उत्तर न दे कर प्रद्युम्न से कहा—'हे वत्स! देखो, सदैव कौतुक प्रियकर नहीं होता है। अब अपने कौतुक का परित्याग कर सब को प्रसन्न करो।' कुमार ने वैसा ही किया। तब समस्त सेना चैतन्य हो उठी। उस समय ऐसा प्रतीत होता था, मानो वे निद्रा त्याग कर उठ रहे हों। वे सब वीर उठते ही कहने लगे—'शत्रु को पराजित करो, तत्काल बन्दी बना लो।' श्रीकृष्ण ने हंसते हुए अपने वीरों से कहा-'बस करो, रहने दो। तुम्हारी समग्र वीरता की परीक्षा हो गयी। मेरे पुत्र प्रद्युम्न ने अकेले ही तुम सब को निहत कर डाला था।' नारायण श्रीकृष्ण का कथन सुन कर सब को घोर आश्चर्य हुआ। उन्हें चकित देख कर श्रीकृष्ण कहने लगे-'यह हमारा पुत्र विद्याधरों का नायक, विद्या-साधक एवं समस्त संसार को परास्त करनेवाला है। इस समय यह हम से मिलने के लिए आया है।' नारायण के प्रिय वचन सुन कर भीम, अर्जुन आदि समस्त सुभट अपने-अपने रथ से उतर कर कुमार से मिले। उसने भी यथावत् सब का अभिवादन किया। तत्पश्चात् बलभद्र आदि गुरुजनों के चरणों में प्रणाम कर उन्हें सन्तुष्ट किया। अपने बन्धु-बांधवों से मिल कर कुमार को जो प्रसन्नता | हुई, वह वर्णनातीत है। सत्य है, परिजनों से मिल कर सब को प्रसन्नता होती है। इधर सम्मिलन का कार्य समाप्त भी नहीं होने पाया था कि भानुकुमार ने अपनी माता सत्यभामा से | प्रद्युम्न के आगमन का समस्त वृत्तान्त कह सुनाया। अपने उद्यान का विनाश, उदधिकुमारी के अपहरण का / Juncu AGERTUS 260