________________ PAGMS कुमार ने अपने विद्याबल की माया से अग्नि स्तम्भित कर दी, फलतः जल उष्ण न हो सका। क्षुल्लक ने फिर कहा- 'हे माता ! उष्ण जल नहीं मिल सका तो न सही, पर मुझे भोजन तो करवा दो।' रुक्मिणी शीघ्रता से उठी एवं स्वयं ही अग्नि प्रज्वलित करने के लिए प्रस्तुत हुई। किन्तु वह प्रयत्न करते-करते व्याकुल हो ||247 गयो, फिर भी अग्नि प्रज्वलित नहीं हुई।' उसे व्याकुल देख कर क्षुल्लक कहने लगा- 'हे माता ! आपके भण्डार में पूर्व निर्मित पक्वात्र ही हो, तो मुझे दे दो। मैं क्षुधा से व्याकुल हो रहा हूँ।' रुक्मिणी ने भण्डार में सब ओर देखा, पर कहीं भी पक्वान्न नहीं मिले। हाँ ! कुछ मोदक महाराज श्रीकृष्ण के लिए रखे हुए थे / वे इतने बड़े-बड़े थे कि नारायण श्रीकृष्ण भी एक से अधिक नहीं खा सकते थे। उन्हें देख कर रुक्मिणी ने सोचा- 'यदि इस कृशांगी क्षुल्लक को ये मोदक (लड्डू) दे देतो हूँ, तो अवश्य ही अपच से उसकी मृत्यु हो जायेगी; किन्तु यदि नहीं देती हूँ, तो वह क्रोधित हुए बिना नहीं रहेगा। उसे इस प्रकार उहापोह में पड़ा देख कर क्षुल्लक उच्च स्वर में पुकार उठा- 'हे माता ! तू कृपणतावश मोदक देना नहीं चाहती। ऐसा ज्ञात होता है कि मुझे आहार करवाने को इच्छा नहीं है ?' रुक्मिणी ने तब उसके सामने मोदक रख दिये। वह तत्काल ही उन्हें चट कर गया। इसके पश्चात् वह अन्य भोज्य पदार्थ लाने के लिए प्रस्तुत हुई, किन्तु क्षुल्लक ने यह कह कर निषेध कर दिया कि उसकी क्षुधा शान्त हो चुकी है। इस प्रकार अपनी जननी को परीक्षा लेकर क्षुल्लक वेशधारी कुमार प्रद्युम्न पूर्णरूपेण सन्तुष्ट हुआ। ___जिस समय क्षुल्लक एवं रुक्मिणी में धर्म-सम्बन्धी चर्चा हो रही थी, उस समय श्री सीमन्धर स्वामी के कथनानुसार कुमार के भागमन के चिह्न प्रकट होने लगे। रुक्मिणी के महल के सम्मुख का अशोक वृक्ष पुष्पित हो उठा, गँगों में वाकशक्ति आ गयो, कुरूप सुरूपवान हो गये, नेत्रहीनों को दृष्टि मिल गई-यही नहीं शुष्क वापिकायें जल से परिपूर्ण हो गथों एवं असमय में ही ऋतराज बसंत का आगमन हो गया। यद्यपि ये शम कर रुक्मिणो प्रसन्न हो रही थी, साथ ही उसके उरोजों से पय (दुग्ध) की धारा प्रवाहित हो चली थी तथापि अपने प्रिय पुत्र प्रद्युम्न का आगमन उसे समझ में नहीं आया। उसने सोचा- 'कहीं यह क्षुल्लक ही मेरा प्रद्यम्न न हो। किन्तु क्या मेरा पुत्र इतना कुरूप हो सकता है ? यदि वास्तव में ऐसा ही हा एवं यही मेरा पुत्र हो, तो सत्यभामा के समक्ष मेरा क्या मान रह जायेगा ? वह अवश्य ही मेरा उपहास करेगी।' Jun Guna