________________ PRACE | उसने अपने कमण्डल का जल भमि पर गिरा दिया। अब तो समस्त हाट (बाजार ) में मानो बाढ़ ही आ गई। जल-प्रवाह में समस्त पण्य (वस्तुएँ) बहने लगीं। नागरिकों ने समझा कि समुद्र ही नगर में बढ़ आया है। रक्षिकायें प्रलाप करती हुई अपनी (वापिका) को लौट गईं। उधर इतना सब कौतुक कर कुमार प्रद्युम्न मी 242. जन-सामान्य की दृष्टि से विलुप्त हो गया। ___तत्पश्चात् विनोदी कुमार ने एक विप्रकुमार (ब्राह्मण युवक ) का वेश बनाया। उसने एक चतुष्पथ पर देखा कि सैकड़ों माली भिन्न-भिन्न प्रकार की मालाएं बना रहे हैं। अपनी विद्या से जिज्ञासा करने पर कुमार को ज्ञात हो गया कि ये मालाएं भानुकुमार के लिए प्रस्तुत हो रही हैं। तब विप्रवेशी कुमार ने मालियों से याचना की कि मुझे भिक्षा के लिए सत्यभामा के मन्दिर में जाना है, अतएव तुम लोग मुझे कुछ पुष्प दे दो, जिससे मुझे वहाँ प्रवेश में सुविधा हो। किन्तु मालियों ने बतलाया- 'हे विप्र देव ! ये पुष्प-मालायें महारानी के पुत्र भानुकुमार के विवाह के लिए प्रस्तुत हो रही हैं। इनमें से एक भी पुष्प नहीं दिया जा सकता।' तब कुमार ने उन पुष्पों का स्पर्श किया, जिससे वे सुगन्धित पुष्प आक के पत्तों में परिवर्तित हो गये। इस प्रकार प्रद्युम्न कौतुक करते हुए आगे बढ़े। उनका सब से विचित्र कौतुक यही होता था कि उत्तम कोटि की वस्तु के स्थान पर निम्न कोटि की वस्तु रख देना-जैसे गज के स्थान पर गर्दभ, अश्व के स्थान पर खच्चर एवं कस्तूरी के स्थान पर होंग रख देना। रत्न काँच के टुकड़े हो गये, सुवर्ण हो गया पीतल एवं पीतल मिट्टी हो गया। ऐसी विचित्र क्रीड़ा करते हुए प्रद्युम्न उस मनोहर राजमार्ग पर जा पहुंचे, जहाँ मदोन्मत्त गज झूम रहे थे। वहाँ प्रद्युम्न ने एक मनोरम महल देखा। तब उन्होंने अपनी विद्या से जिज्ञासा की। विद्या ने बतलाया--'हे नाथ! यह स्वर्ग सदृश रमणीक महल श्रीकृष्ण के पिता महाराज वसुदेव का है।' प्रद्युम्न ने / पुनः विद्या से प्रश्न किया कि उनकी रुचि किस ओर अधिक रहती है ? विद्या ने बतलाया कि वे मेढ़ों का युद्ध देखने में रुचि रखते हैं। कुमार ने तत्काल अपने विद्या-बल से एक मेढ़ा बनाया एवं उसे ले कर महल की / ओर बढ़े। शीघ्र ही वे मणिमय अलङ्कारों से सुशोभित उस महल में जा पहुंचे। उन्होंने सभा के मध्य विराजमान अपने पितामह के दर्शन किये। उनकी देह की आमा चन्द्रमा सदृश थो, भुजायें गजराज के सँड़ के सदृश थों, | वक्षस्थल विस्तीर्ण एवं केश घुघराले थे। अपने सर्वाङ्ग-सुन्दर पितामह को देख कर प्रद्युम्न को परम सन्तोष ! 242