________________ P.P.AC.GanrathasunMS. 240 वापिका के सम्बन्ध में विद्या से जिज्ञासा की. तब उसने बतलाया कि यह मनोहर वापिका मानकुमार को माता सत्यभामा की है। विद्या से यह सुन कर प्रद्युम्न अत्यन्त प्रसन्न हुए। उन्होंने तत्काल ही एक ब्राह्मण का वेश बनाया। वह कृत्रिम ब्राह्मण छत्र, दण्ड, कुंडी एवं हरी दूब लिये हुए था। उसकी आकृति रोसो लगती | थी कि जिससे दर्शकगण उसे वेदज्ञ ब्राह्मण समझे। किन्तु उसकी स्थल देह वृद्धावस्था के कारण प्रकम्पित हो रही थी। वह ब्राह्मण वेद-पाठ करता हआ वापिका के समीप जा पहुँचा। उसने रक्षिकाओं 'हे पुत्रियों ! मैं तुम से याचना करता हूँ कि मुझे इस वापिका में स्नान कर एक कमण्डल जल भर लेने दो। जल को ले जाकर किसी को तृप्त करूंगा,जिससे मुझे भोजन भी प्राप्त हो जायेगा।' ब्राह्मण का अनर्गल प्रलाप सुन कर वे रक्षिकार्य कहने लगीं-'अरे मूर्ख ब्राह्मण ! क्या तू ने महाराज श्रीकृष्ण की पटरानी सत्यभामा का नाम नहीं सुना है ? यह वापिका उन्हों को सम्पदा है। महाराज श्रीकृष्ण एवं मानकुमार के अतिरिक्त अन्य कोई भी इस वापिका में प्रवेश नहीं कर सकता। तुम्हारे सदृश दीन भिक्षुक को तो इसके दर्शन तक नहीं हो सकते।' रक्षिकाजों का निषेध सुन कर ब्राह्मण वेशधारी कुमार ने कहा- 'हे देवियों! अगर महाराज श्रीकृष्ण का पुत्र इस वापिका में स्नान कर सकता है, तो मुझे स्नान क्यों नहीं करने देती हो ? मैं तो महाराज श्रीकृष्ण का ज्येष्ठ पुत्र हूँ। तुम्हें विश्वास न हो, तो मेरी बात सुनो तुम लोगों ने हस्तिनापुर के महाराज दुर्योधन का नाम अवश्य सुना होगा। उसने अपनी पुत्री उदधिकुमारी का विवाह श्रीकृष्ण-पुत्र भानुकुमार के सङ्ग करने का निश्चय किया था। इसलिये उसने एक बड़ी सेना के साथ उसे भेजा था। किन्तु दुर्भाग्य से वह कुमारी मार्ग में ही मीलों द्वारा अपहत कर ली गयी। मीलों ने उसे अपने स्वामी की सेवा में उपस्थित कर दिया। नवौवना कुमारी को देख कर भीलराज ने विचार किया कि यह परम सुन्दरो कन्या क्षत्रिय कुल में उत्पन्न हुई है, अतः इसका विवाह किसी राजकुमार के सङ्ग हो होना चाहिये , यह सोच कर उस भील राजा ने उस कन्या को अपने संरक्षण में रख लिया। संयोग से मैं भ्रमण करता हुआ उस भोलराज के राज्य में पहुँच गया। मुझे पराक्रमी, बलशाली एवं रूपवान समझ कर उसने वह कन्या मुझे समर्पित कर दी। अब तुम्ही बतलाओ कि जो कन्या श्रीकृष्ण-पुत्र के लिए भेजी गयी थी, वह मुझे प्राप्त हो गई, तो मैं श्रीकृष्ण-पुत्र हो गया अथवा नहीं ? फिर भी तुम लोग मुझे वापिका में स्नान Jun Gun Aaradhak Trust 140