Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

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Page 142
________________ P.P.Ad Gurransuri MS करने पर ज्ञात हुआ कि यह उद्यान भी सत्यभामा का है। उसी समय प्रद्युम्न ने विद्या के बल स एक वानर / बनाया एवं स्वयं चाण्डाल का रूप धर कर उद्यान रक्षकों से प्रार्थना की-'मेरा यह वानर भूख से व्याकुल हो रहा है। इसे कुछ फल भक्षण के लिए दे दो। इससे ही मेरी आजीविका चलती है। यदि इसकी उदर पूर्ति इसको उदर पूति / 136 हो गयी, तो इसके कौतुक से तुम लोगों का मनोरअन करूँगा।' प्रहरियों ने क्रोधित हो कर कहा–'तुम्हें उन्माद का रोग तो नहीं हो गया है ? फल-पुष्पों से भरा हुआ यह उद्यान महारानी सत्यभामा का है। यदि महाराज श्रीकृष्ण के सेवक देख लेंगे, तो तुम्हें कठोर दण्ड भोगना पड़ेगा।' उद्यान रक्षकों की अनुमति न मिलने पर भी चाण्डाल (प्रद्युम्न) ने उस वानर को उद्यान में प्रविष्ट करा दिया। जब वे उद्यान रक्षक उसे पकड़ने के लिए प्रयत्न करने लगे, तो वहाँ सहस्रों मायामयी वानर आ गये एवं उद्यान को विध्वस्त करने लगे। उन्होंने समस्त वृक्षों-लताओं को उखाड़ कर समुद्र में प्रवाहित कर दिया। इस प्रकार उस उद्यान का सर्वनाश करा कर प्रद्युम्न चाण्डाल के वेश को त्याग कर नगर में चले आये। नगर के प्रवेश-द्वार पर ही प्रद्यम्न ने मङ्गल कलशयुक्त एक रमणीक रथ देखा, जो उसकी भोर हो ना रहा था। रथ के विषय में अपनी विद्या से जिज्ञासा करने पर प्रद्युम्न को ज्ञात हुआ कि वह रथ सत्यभामा का है। रथ की स्वामिनी को अपनी माता की बैरिणी समझ कर प्रद्युम्न ने एक विकृत आकृति बनाई। उसने विद्या बल से एक अशुभ रथ का निर्माण किया, जिसमें गर्दभ एवं उष्ट्र (ऊँट) जुते हुए थे। प्रद्युम्न ने उस रथ को सत्यभामा के रथ की ओर बढ़ाया। कृत्रिम रथ को टक्कर ने सत्यभामा के रथ को चूर्ण-विचूर्ण कर डाला। रथ पर मारूढ़ नारियाँ भूतल पर गिर पड़ों एवं वे क्षत-विक्षत हो गई। पहिले वे गीत गा रही थों, अब विलाप करने लगीं। ऐसे ही विचित्र लीलायें करते हुए प्रद्युम्न अपने रथ पर आरूढ़ होकर नगर की वीथियों में भ्रमण करने लगा। उसके विचित्र रथ को देख कर दर्शकगण तालियाँ पीटते थे। लोगों को आश्चर्य हो रहा था कि यह विद्याधर है या कोई अन्य, जी महाराज श्रीकृष्ण की नगरी में इस प्रकार निर्भय हो कर कौतुक कर रहा है ? इस प्रकार के अनुमान सुनते हुए प्रद्युम्न ने दीर्घ काल तक नगर-भ्रमण किया। , तत्पश्चात् प्रद्युम्न ने एक अन्य स्वरूप धारण किया। वे चलते-चलते एक सरोवर पर जा पहुँचे, जिसकी सीढ़ियाँ सुवर्णमयी एवं रत्नमयी थीं। उसकी रक्षा के लिए अनेक सशस्त्र रक्षिकायें नियुक्त थीं। प्रद्युम्न ने 136 Jun Gun Andhak Trust

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