________________ 220 योग्य हो चुके हो, अतएव मेरे सङ्ग आनन्दोपभोग करो। यदि ऐसा करने में तुम्हें सङ्कोच होगा, तो मेरी मृत्यु अवश्यम्भावी है एवं तुम्हें नारी-हत्या का पाप लगेगा।' पालनकर्ता माता के ऐसे कुत्सित वाक्य सुन कर प्रद्युम्न को हार्दिक सन्ताप हुआ। उसने कहा- 'हे माता! ऐसे लोक-विरुद्ध वचन तुम्हारे मुख से कैसे निकल पड़े ? कुमार्ग की ओर प्रवाहित होनेवाले मन का शमन करना चाहिये।' ऐसा कह प्रद्युम्न महल से बाहर निकला तथा उसने वन की ओर प्रस्थान किया। वन के एक मन्दिर में अवधिज्ञानी जैन मुनियों के सङ्घ के नायक एक विद्वान आचार्य विराजमान थे। उनका नाम श्री वरसागर था। प्रद्युम्न ने उनके दर्शन किये तथा भक्तिपूर्वक नमस्कार कर वहीं बैठ गया। उसके मन में माता के चित्त के विकार की स्मृति दंश घर रही थो। उसने नम्रतापूर्वक मुनि से निवेदन किया- 'हे स्वामी! माता काम से आकुल होकर मेरे ऊपर क्यों आसक्त हुई ?' प्रद्युम्न का निवेदन सुन कर मुनिराज ने कहा- 'हे वत्स! संसार को समस्त चेष्टाएँ बिना कार्यकारण सम्बन्ध के नहीं होती। ऐसा स्नेह तथा बैर पूर्व-जन्म के सम्बन्ध से ही हुआ करता है। ध्यान से सुनो मैं बतलाता हूँ। पूर्व-जन्म में तू मधु नामक राजा था। तू ने काम के वशीभूत होकर सामंत राजा हेमरथ को पत्नी चन्द्रप्रभा का अपहरण किया था। उसने दीक्षा ले कर उत्कृष्ट तप किया तथा सोलहवें स्वर्ग में उत्पन्न हुई। वहाँ बाईस सागर पर्यन्त सुखोपभोग कर इस समय कालसंवर की शनी कनकमाला हुई है तथा तू स्वयम् अपने भाई कैटम के साथ चिरकाल तक सुख भोग कर द्वारिका में यदुवंश तिलक नारायण श्रीकृष्ण का पुत्र हुआ। एक दिन तू अपनी माता रुक्मिणी के साथ निद्रामन था, तब पूर्व-जन्म के शत्रु दैत्य ने तुम्हें ले जा कर तक्षक पर्वत की शिला के नीचे दबा दिया। संयोग से कालसम्बर तथा उसकी रानी कनकमाला वहाँ पहुँच गये। वे तुम्हें निकाल कर अपने घर ले गये तथा पालन-पोषण कर योग्य बनाया। कनकमाला इस समय पूर्व-जन्म के सम्बन्ध से ही काम सन्तप्त हुई है। वह तुम्हें दो विद्यायें प्रदान करना चाहती है, तुम्हें उस से छलपूर्वक उन विद्याओं को ले लेना चाहिये।' प्रद्युम्न ने प्रसन्नता के साथ आचार्य से निवेदन किया--'मैं आप के परामर्श का अक्षरशः पालन करूँगा। किन्तु मेरी एक अन्य शङ्का भी है, वह यह है कि बाल्यावस्था में ही मेरी माता (रुक्मिणी) से जो मेरा वियोग हुआ, वह क्या मेरे पापोदय से हुआ या माता के कर्मदोष से ?' मुनिराज ने उत्तर दिया- 'हे वत्स ! यह वियोग तुम्हारी माता के कर्मदोष से हुआ है। कारण पूर्व के सञ्चित पाप-पुण्य से Jun Gun anche 120