Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

View full book text
Previous | Next

Page 138
________________ | 135 P.P.Ad Gurrasur MS. | के पुत्र के साथ मेरा विवाह होनेवाला था. पर कहाँ भीलों द्वारा अपहत की गई हूँ?' कुमारी ने विलाप करते हुए निवेदन किया- 'हे तात ! जब मैं भील द्वारा सतायी जा रही हूँ, तो आप मेरी रक्षा क्यों नहीं करते ? साथ ही मुझे एक सन्देह हो रहा है कि यह भील तो दुरात्मा है, पर इसे आकाश में गमन की शक्ति कहाँ से प्राप्त हुई ? यह कोई देव है, दैत्य है या राक्षस है ? कहीं विद्याधर का पुत्र तो नहीं है ? आप यह भी तो बतलाइये कि इस पापी के साथ आप का सङ्ग कैसे हो गया ? मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि मेरी तरह आप को भी इसने बन्दी बना लिया है।' उस समय नारद ने देखा कि यदि इस कुमारी को सान्त्वना न दी गयी, तो यह शोक से प्राण त्याग देगी। उन्होंने कहा-'पुत्री! तू हर्ष के स्थल में शोक क्यों करती है ? अपने माता-पिता का पुण्य-स्वरूप यह वही रुक्मिणी का पुत्र है, जो तेर। पति होनेवाला था। यह विद्याधरों के यहाँ से जा रहा है। अतएव तुम्हें तो हर्षित होना चाहिये।' इस प्रकार कुमारी को आश्वासन देकर नारद प्रद्युम्न से बोले'हे वत्स! अब कौतुक करना समाप्त करो। सदैव परिहास शुभ नहीं होता, अतएव अपने मनोहर रूप को प्रकट कर इस सुन्दरो के नेत्रों को तृप्त करो।' नारद का परामर्श सुन कर प्रद्युम्न ने अपना वास्तविक रूप प्रकट किया। उसके मनोहर रूप को देख कर उदधिकुमारी अत्यन्त सन्तुष्ट हुई। उसो प्रकार प्रद्युम्न भी उस सुन्दरो के प्रेम-पाश में आबद्ध हुआ। दोनों के हृदयों में जो अनुराग-जन्य भाव उत्पन्न हुए, उनका वर्णन लेखनी से नहीं किया जा सकता, किन्तु नारद मुनि की उपस्थिति के कारण वे अपने मनोभाव शमित किये रहे / विमान अपनी पूर्व गति से उड़ने लगा। / कुछ दूर आगे बढ़ने पर प्रद्युम्न ने एक रमणोक नगरी देखी। उन्होंने नारद मुनि से पूछा-'हे तात! यह कौन-सी नगरी है ?' नारद ने उत्तर दिया-'हे वत्स! यह द्वारिका नगरी है। इसे प्रकृति ने स्वयं अपने | हाथों से संवारा है। इस नगरी की अपूर्व सुन्दरता देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो प्रकृति ने स्वग का एक भूखण्ड हो ला कर यहाँ स्थापित कर दिया हो। यहीं महाराज श्रीकृष्ण निवास करते हैं। यहाँ के | 235 नर-नारियों को सुन्दरता को अवलोक कर तो देव-देवाङ्गनाओं तक का मान होता है / वस्तुतः द्वारिका की | रमणीयता स्वर्ग से भी बढ़ी-चढ़ी है।' __ नारद प्रद्युम्न से द्वारिका को शोभा का वर्णन करते जा रहे थे कि विमान नगरी के केन्द्र में जा पहुँचा।। Jun Gun And Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200