________________ रक्तवर्णी लोहित हो रहे थे। उसने प्रचण्ड स्वर में ललकार कर कहा-'रे दुराचारी मानव! तू इस वृक्ष की || डालियाँ झकझोर कर पवित्र फलों को पृथ्वी पर क्यों गिरा रहा है ?' वानर के दुर्वचन से कुमार भी कुपित हुआ। दोनों भीषण संग्राम में रत हुए। जब कुमार ने वानर को पृथ्वी पर पटकना चाहा, तब वानर रूपी देव // 114 प्रकट हो गया। उसने कहा-'हे नाथ ! मुझ दीन पर कृपा करो।' देव ने एक मुकुट एवं दिव्य-रस का पात्र कुमार को भेंट में दिया। जब वह वृक्ष से नीचे उतरा, तो सब भ्राता अत्यन्त क्रोधित हुए; किन्तु कपटी वज्रदंष्ट्र ने उन्हें शान्त कर दिया। तब वे कुटिल हृदय राजपुत्र प्रद्युम्न को कपिल नामक वन में ले गये। वज्रदंष्ट्र ने बड़ी चतुराई से कहा-'इस वन में प्रवेश करनेवाला समस्त धरातल का स्वामी होता है। ऐसा मैं ने वृद्ध विद्याधरों के मुख से सुना है।' साहसी प्रद्युम्न प्रसन्नता के साथ वन में प्रविष्ट हुआ। वहाँ उसे विकराल हस्ती के रूप में एक असुर मिला, जिससे प्रद्युम्न को विकट युद्ध करना पड़ा। पर अन्त में वह भी परास्त हुआ। उसने बड़ी विनम्रता से कहा- 'हे नाथ! मैं ने बड़ी भूल की। मैं आप का सेवक हूँ।' इतना कह कर उसने कामदेवरूपी प्रद्युम्न की पूजा की। इस तरह सफल मनोरथ प्रद्युम्न अपने भ्राताओं के समीप लौट आया। फिर वज्रदंष्ट्र उन्हें अनुबालक नामक पर्वत पर ले गया। उसने बतलाया कि इसके शिखर पर बारोहण करनेवाला पृथ्वी का अधिपति होता है। प्रद्युम्न उस पर भी निःशङ्क चढ़ गया। वहाँ प्रद्युम्न ने सर्परूपी देव से दीर्घकाल तक संग्राम किया। पराजित होने पर उस देव ने अश्व, रत्न, क्षुरिका, कवच एवं मुद्रिका—ये वस्तुएँ भेंट की एवं भक्तिपूर्वक समर्थना की। इस तरह प्रद्युम्न को नवें लाभ की प्राप्त हुई। उसे सफलतापूर्वक लौटते देख कर विद्याधर कुमार परस्पर विचार करने लगे कि अब क्या करें? अब की बार वे प्रद्युम्न को शरावास्प नामक महापर्वत पर ले गये ! वहाँ पहुँच कर ज्येष्ठ भ्राता वज्रदंष्ट्र ने कहा- 'इस पर्वत पर आरोहण करनेवाला विद्याधरों की राज्य-लक्ष्मी प्राप्त करता है।' ज्येष्ठ की अनुमति से प्रद्युम्न पर्वत के शिखर पर पहुँच कर उसे प्रकम्पित करने लगा। शीघ्र ही एक देव उपस्थित हुजा एवं संग्राम में उसे भी परास्त होना पड़ा। उसने प्रद्युम्न को दिव्य आभूषण-कण्ठी, बाजूबन्द, दो कड़े एवं करधनी भेंट किये।। साथ ही उसने उनकी सम्मानपूर्वक पूजा की। विजयी प्रद्युम्न को लौटते देख कर शेष विद्याधर राजपुत्रों को बड़ा आश्चर्य हुआ। वे क्रुद्ध हो कर उसे वराहाकार पर्वत पर ले गये। उन कपटी राजकुमारों ने ईर्ष्यावशी Jun Gun Arad