Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ P.PAC Gunnan MS संयोग से बसन्त नामक देव का आगमन हुआ। वह कुमार का अभिवादन कर वहीं बैठ गया। शिष्टाचारवश कुशल-प्रश्न के पश्चात् कुमार ने देव से उस सुन्दरी के विषय में पूछा - 'हे महामाम ! तुम मेरे सन्देह को निवृत्ति करो। यह अन्यतम सुन्दरी इस निर्जन स्थान में कैसे लाई ? यह रिकी पुत्री है एवं उपरश करने 27 का क्या उद्देश्य है ?' बसन्त ने उत्तर दिया-'विद्याधरों का प्रमअन नामक एक नायक है. उसकी पत्नी का नाम बाक्र है, यह कन्या उन्हीं की पुत्री है / इसका नाम रति है।' कुमार ने पुनः पूछा-'यह नव-यौवनावस्था में ही तपस्या क्यों कर रही है ?' देव कहने लगा-'एक बार आहार करने के लिए एक योगी इसके पिता के घर आये।' बाहार हो चुकने के पश्चात् विद्याधर नरेश प्रमअन ने योगी से जिज्ञासा की- 'हे स्वामिन् ! कृपया यह तो बतलाइये कि मेरी पुत्री का पति कौन होगा?' उस योगी ने बतलाया कि द्वारिका के अधिपति नारायण श्रीकृष्ण का पुत्र प्रद्युम्न इसका पति होगा। वह अतुल वैभव-सम्पन्न हो कर विपुल नामक वन में पधारेगा एवं उसी समय रति का पाणिग्रहण करेगा। उसी योगी के वचनों पर विश्वास कर यह कन्या वन में तप कर रही है। इस कन्या के पुण्य-प्रभाव से ही आपका शुभागमन हुआ है / अतएव आप दोनों का सम्बन्ध हो जाए, तो अति उत्तम हो।' कुमार को अपूर्व प्रसन्नता हुई। वे शीश नवा कर बोले- 'मैं तो पुण्य-बल से पर्यटन करता हुआ यहाँ तक आ पहुँचा हूँ! इस सुन्दरी को देखते ही मैं कामबाण से बेधित हो गया ! यदि आप की कृपा से यह सम्बन्ध हो जाए, तो मैं अपने को कृत-कृत्य समदूंगा।' कुमार के कथन से देव को सन्तोष हआ। उसने तत्काल ही दोनों का विधिपूर्वक पाणिग्रहण करवा दिया। स्त्री-रत्न की प्राप्ति के पश्चात कुमार ने एक अन्य लाभ भी प्राप्त किया। ____ विवाह के पश्चात् उसी रमणीक वन में सङ्कट नामक असुर राक कुमार से आकर मिला / उसने कुमार को नमस्कार कर कामधेनु एवं बसन्त के सदृश मनोहर रथ भेंट किये। उसी रथ पर जारूढ़ होकर प्रद्युम्न ने अपनी प्रिया रति के साथ प्रस्थान किया। जब उसके भ्राताओं ने षोडश लाभ प्राप्त करनेवाले कुमार को देखा, तो उन्हें बड़ो ग्लानि हुई। कुमार ( कामदेव) ने रति के साथ रथ पर आनन्दपूर्वक यात्रा की। उसके। शेष विद्याधर भ्राता भी अनुगमन करते हुए चले। वे सब-के-सब नगर की ओर जा रहे थे। इससे यह प्रकट होता है कि पाप एवं पुण्य का फल प्रत्यक्ष घटित हुआ। समग्र नगर-निवासियों ने भी इस सत्य का अनुभव किया। JunGunARAN ovirus

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200