________________ .P.P.AC.Gunratnasun MS. | 72 दुराचारियों को शीघ्र यमराज के यहाँ पठा देता हूँ।' जब मुनिराज देखा कि यक्ष की क्रोधाग्नि से द्विज-पुत्रों को रक्षा होना कठिन है, तब उन्होंने कहा- 'हे यक्षराज! इन्हें प्राण-दान देने का एक विशेष कारण है। ये दोनों बाईसवें तीर्थङ्कर श्री नेमिनाथ स्वामी के वंश में श्रीकृष्णनारायण के पुत्र होंगे एवं उसी भव से कर्मों का क्षय कर मोक्ष प्राप्त करेंगे। अतएव इनका वध कर देना कदापि वांछनीय नहीं।' मुनि की उक्ति से यक्षेन्द्र बड़ा प्रभावित हुणा। उसने अपने सङ्कल्प का परित्याग कर मुनिराज को नमस्कार किया एवं राजा तथा समग्र मनुष्यों के सामने द्विज-पुत्रों को कीलित अवस्था से मुक्त कर दिया। तत्पश्चात् जैन धर्म की प्रभावना कर यक्षराज वहाँ से प्रस्थान कर गया। यह अपूर्व चमत्कार देख कर राजा एवं प्रजा को जैन धर्म पर दृढ़ बास्था उत्पन्न हुई। वे बड़े ही प्रसन्न हुए। सत्य ही है, धर्म की प्रभावना देख कर किसे प्रसन्नता नहीं होती अर्थात् सब को होती है। बन्धन-मुक्त होने पर अग्निभूति एवं वायुभूति (द्विज-पुत्रों) ने श्रद्धापूर्वक मुनिराज को नमस्कार किया। उन्होंने प्रार्थना की- 'हे कृपासिन्धु ! हमने घोर अन्याय किया है। आप हमें क्षमा करें।' उत्तर में मुनिराज ने कहा-'मैं तो पहिले ही क्षमा कर चुका हूँ। मेरी तो जीवमात्र से उत्तम क्षमा है, अब मैं कौन-सी नवीन क्षमा धारण करूँ? जीव को अपने कर्मानुसार दुःख-सुख भोगना पड़ता है। जिसने किसी को पूर्व-जन्म में दुःख दिया होगा, उसे इस जन्म में वह दुःख देता है। यदि उपकार किया होगा, तो ऋण-शोधन में वह उपकार करेगा / पूर्व-भव के कर्म-उपार्जन ही दुःख-सुख लाभ-हानि, जय-पराजय में कारणभूत होते हैं। तुम लोग इसकी रञ्चमात्र भी चिन्ता न करो।' मुनिराज के वचनों से दोनों द्विज-पुत्रों को वैराग्य उत्पन्न हुआ। वे उन्हें बारम्बार नमस्कार कर कहने लगे-'हे दया के सागर! हमारी एक प्रार्थना है। आप धर्मरूपी गृह के सुदृढ़ स्तम्भ हैं। आप की काया धर्माचरण एवं आत्म-कल्याण का साधन है। हमने अपनी दुर्बुद्धि से आप की पूज्य काया को ही विनष्ट करने का निश्चय किया था। इसमें संशय नहीं कि हमें वज्र-पाप का बन्ध हा होगा। अतएव कृपा कर हमें ऐसा व्रत-जप-तप बतलाइये. जिसके पालन से हमारे इस कर्म-बन्धन में शिथिलता आ जाये। मुनिराज ने उत्तर देते हुए कहा-'हे द्विज-पुत्रों ! मैं तुम्हारे लिए धर्मरूपी महावृक्ष के बीज रूप एवं Jun Cun A Trust