________________ 105 P.P.Ad Gurransuri MS ___ इस प्रकार सब जीवों ने गुरु-भक्ति में दत्तचित्त हो कर तपश्चरण एवं जैन-शास्त्रों का अध्ययन किया। शास्त्र-सापडल हो कर पुण्य-योग से सम्माशिमरण कार के वे सब-के-सब्द जोक को पाप हुर चन्द्रप्रसा के जोन ने देवाङ्गना की अवस्था में राजा मधु के जीव (देव) के साथ दोर्घकाल तक सुख भोग किया, तत्पश्चात् हरिपत्तननगर के राजा हरि की पत्नी हरिवती से कनकालाला नाम की पुत्री हुई। वही कनकमाला मेघकूट के राजा कालसंबर की शनी हुई। राजा मधु का जो जीव तपश्चरण के चाव से सोलहवें स्वर्ग में देव हुआ था, वह नाराक्ष्ण श्रीकृष्शा की स्ली रुक्मिणी के गर्भ में आया एवं कैटम का जीव श्रीकृष्ण की रानी जाम्बवंती के गर्भ में। पर राजा हेमरथ का जीव आर्त भाव से मरण कर चिरकाल तक निम्न सोनियों में परिभ्रमण करता हुआ धूमझतु नामक असुर जाति के देवों का नायक दैत्य हुआ / यही दैत्य आकाश-मार्ग से क्रीड़ा करता हुला आ रहा था। देवयोग से उसका विमान द्वारिका नारी में रुक्मिणी के महल पर स्तम्भित हो गया। दैत्य को ज्ञात हो गया कि पूर्व-मव में जिस राजा मधु ने उसकी प्रिय पत्नी का अपहरण किया था, वही शत्र अब यहाँ जन्मा है। ऐसा विचार कर वह क्रुद्ध दैत्य मात्र षष्ठ दिवस पूर्व जन्मे उस अबोध शिशु को हर कर ले गया। अतएव है नृपति ! किसी से बैर नहीं करना चाहिये। इससे धर्म का विनाश होता है एवं नरकादि की वेदना सहनी पडती है। ज्ञानीजनों को संसार के कारणभूत बैर-विरोध का सर्वथा त्याग कर देना चाहिये।' इनकार श्री सोमन्धर स्वामी ने अपनी दिव्य-ध्वनि द्वारा पद्मनाम चक्रवर्ती लादि श्रोताओं को प्रद्यमकमार का पवित्र वृत्तान्त सुनाया,इससे सब जीवधारिसों को अतिशय शान्ति मिलो। श्रीकृष्ण के पुत्र का वृत्तान्त सन कर नारद मुनि बड़े प्रसन्न हुए। तीर्थङ्कर को साष्टांग नमस्कार कर उन्होंने वहाँ से प्रस्थान लिया। तत्पश्चात वे नारायण श्रीकृष्ण के पुत्र के दर्शन की अभिलाषा से विजयार्द्ध श्रेणी में स्थित मेघकूट नामक पर्वत पर चले आये एवं राजा कालसंवर को सभा में उपस्थित हो गये। नारद मुनि को देख कर समस्त समा सम्मान में उत्तिष्ठ (खड़ी) हो गयी। राजा कालसम्वर ने उनका यथोचित आदर-सम्मान किया। बाशीर्वाद पदान करनारद सन्दर आसन पर विराजमान हुए। कुछ काल तक परस्पर वार्तालाप होता रहा। तत्पशात नारद ने कहा- 'हे राजन् ! मैं तुम्हारा अन्तःपुर देखना चाहता हूँ।' राजा कालसम्बर ने उत्तर में कहा'हे स्वामिन ! यह तो आप की महती कृपा होगी, यदि आप मेरे गृह को पवित्र करें।' श्रीकृष्ण-पत्र प्रद्यमको Jun Gun -- - d hak Trust 14