________________ PIPAGS भा५७प्राप्त पराया कामुप करन का जाशा 55 / / पचा vv.5.. ... .7.. लिए राजमहल की ओर आये। उन्हें देख कर महाराज मधु विनयपूर्वक उनके निकट गये। राजा मधु ने // मुनिवर की तीन प्रदक्षिणा देकर अनुरोध किया-'हे प्रभो! तिष्ठो, तिष्ठो! माहार-जल शुद्ध है।' तत्पश्चात् ||204 / उन्होंने मुनिराज को जन्तुरहित आसन पर विराजमान कराया, भक्तिभाव से उनका चरण-प्रक्षालन किया एवं उनके चरणोदक को मस्तक पर चढ़ाया। मुनिराज की पूजा-वन्दना कर राजा ने अपने को पवित्र किया। तत्पश्चात् रानी चन्द्रप्रभा के सङ्ग पापों का प्रत्याख्यान कर के महाराज मधु ने नवधा-भक्ति के साथ मुनि को माहार-दान दिया एवं अगाध पुण्य का उपार्जन किया। जब मुनि का निर्विघ्न बाहार हो गया, तो आहार-दान के प्रभाव से राजा मधु के यहाँ पञ्चाश्चय प्रकट हुए। वस्तुतः शुद्ध भाव से किये हुए कार्य में सफलता अवश्य मिलती है। मुनिराज आहार ग्रहण करने के उपरान्त वन में विहार कर गये। कालान्तर में वहाँ उन्होंने घातिया कर्मों का नाश कर दिव्य केवलज्ञान प्राप्त किया। . वनपाल ने भाकर राजा मध को मनिराज के केवलज्ञानी होने का शभ समाचार कह सुनाया। यह शुभ सम्वाद सुन कर राजा मधु की प्रसन्नता का पारावार न रहा। वे गजारूढ़ हो कर नगर-निवासियों के सग मुनि-वन्दना के लिए चल पड़े। केवली भगवान को देखते ही राजा मधु ने राज-चिह्नों का परित्याग कर अष्टाङ्ग नमस्कार किया। आशीर्वाद में मुनि ने कहा-'धर्म वद्धि हो'। उस समय महाराज मधु पृथ्वी पर बैठ गये। उन्होंने मुनिराज से निवेदन किया-'हे स्वामी! आप मुझे जिन-धर्म का वास्तविक स्वरूप समझाइये।' मुनिराज ने कहा-'हे राजन! जिनेन्द्र भगवान द्वारा कहे हर दश प्रकार के धर्मों का मैं संक्षेप में वर्णन करता हूँ।' धर्म का स्वरूप सुन कर राजा मधु को वैराग्य उत्पन्न हो गया। वे दिगम्बर दीक्षा लेकर मुनि हो गये। उनकी परिणीता पूर्व-पटरानी ने आर्थिका के व्रत स्वीकार किये। इसी समय राजा मधु के अनुज केटम / 204 ने भी अपनी पत्नी के साथ दीक्षा ले ली। कैटभ मुनि हुए एवं उनकी पत्नी आर्थिका। चन्द्रप्रभा ने देखा कि अब | तो मैं दोनों ओर से भ्रष्ट हो रही हूँ-कारण प्रथम पति तो विरह में उन्मत्त हो गया एवं दूसरा दिगम्बर || मुनि / तब उसने भी श्रद्धापूर्वक आर्थिका के व्रत की दीक्षा ले ली। Jun Gan arah