________________ पति को तू निन्दा करती है।' दासी ने समझा कि रानी मेरे कथन को असत्य समझती है। यदि इसकी यही। धारणा रही, तो मुझ पर आयै भी रोष करेगी, अतएव राजा हेमरथ से साक्षात्कार करवा देने में ही कुशल है। उस चतुर धाय ने रानी से कहा-'कृपया धैर्य धारण करो। मैं राजा हेमरथ को तत्काल प्रस्तुत करती हूँ।' || 202 कहा-'एवमस्त। बतला कहाँ है वह?' उन्मत्त राजा हेमरथ उसी समय महल के नीचे आया। धाय ने मलिन वेष धारण किये हर राजा हेमरथ को इडित से दिखला कर कहा-'हे पुत्री! आकृति एवं लक्षणों से यह राजा हेमरथ ही प्रतीत होता है।' चतुर चन्द्रप्रभा भी समझ गयी कि वह उन्मत्त उसका पूर्व पति राजा हेमरथ ही है, जो 'चंद्रप्रभा-चंद्रप्रभा' कह कर प्रलाप कर रहा है / अपने पूर्व पति की ऐसी दुर्दशा देख कर चंद्रप्रभा भी अब शोक-सागर में निमग्न हो गई। उसने विचार किया-'धिक्कार है, मेरे जीवन को। मैं महापापिनी हूँ, जो मेरे वियोग में मेरे पति की ऐसी दुर्दशा हो रही है। धिक्कार है. इस स्त्री-जीवन को, जिसे सदा परवश रहना पड़ता है।' जिस समय चंद्रप्रभा अपने को बारम्बार धिक्कार रही थी, उसो समय राजा मधु भी वहाँ आ गया। तब वह चतुर रानी चंद्रप्रभा अपनी मर्मान्तक पीड़ा को गुप्त रख कर महाराज मधु के सम्मुख उपस्थित हो गयी। उसने राजा मधु का आलिङ्गन कर प्रेम-सम्भाषण किया। राजा मधु भी पूर्व की ही माँति महल की छत पर चला गया। ___शरद् ऋतु की चन्द्र-ज्योत्स्ना में महाराज मधु चंद्रप्रभा के साथ नगर की शोभा अवलोक रहे थे। उसी समय एक अन्य वैचित्र्य भी घटित हुआ। चण्डकर्मा नाम का नगर कोतवाल एक पुरुष को दृढ़ता से बाँध कर ले आया। उसने राजा मधु को प्रणाम कर कहा- 'हे महाराज ! इस युवक ने पर-स्त्री का सेवन किया है। इसलिये मैं इसे बाँध लाया हूँ। इसे उचित दण्ड मिलना चाहिये।' कोतवाल का अभियोग सुन कर राजा मधु क्रोधामिभूत हो उठा। उन्होंने आज्ञा दे दी- 'हे कोतवाल ! इस पापी को ले जाकर तत्काल शूली पर चढ़ा दो। ऐसे पापी को देखने से भी दोष लगता है।' राजा मधु की आज्ञा सुन कर रानी चंद्रप्रभा ने विनयपूर्वक कहा-'हे नाथ ! यह पुरुष युवा है। इसे प्राणदण्ड की आज्ञा क्यों देते हैं ? इसने ऐसा कौन-सा गर्हित अपराध किया है ?' राजा मधु ने उत्तर दिया- 'हे देवी! यह पर-स्त्रीगामी है। इससे निन्द्य मला अन्य कौन-सा पाप है?' रानी चंद्रप्रभा ने मुस्करा कर कहा-'मुझे तो इसमें कोई दोष नहीं दीखता। आप व्यर्थ में ही इस Jun Gun Aaradh 302