________________ 75 PP Ad Gunanasuti MS युनाग, नारिङ्ग आदि के मित्र-मित्र वृक्ष लगे हैं, जिन पर तरह-तरह के सुगन्धित पुष्प शोभा दे रहे हैं। यहाँ की निर्मल जल से पूर्ण बावड़ियाँ, उनकी सुवर्ण-जड़ित सीढ़ियाँ एवं उनमें खिले हुए कमल एक नूतन स्वर्ग का ही आभास देते हैं / सरोवरों में हंस एवं सारस पक्षियों के कलरव को देख कर मानसरोवर का-सा आमास होता है। यहाँ की गम्भीर नदियों में तरंगें ऐसी शोभा देती हैं, मानो निर्मल बुद्धि ही हो। स्वच्छ जल के विशाल सरोवर नगर के चतुर्दिक हैं। भूमि इतनी उर्वरा है कि गन्ने की सघन खेती हो रही है। यहाँ पर जगह-जगह दानशालायें बनी हुई हैं। यहाँ के ग्राम परस्पर इतने निकट हैं कि एक गाँव का कुक्कुट उड़ कर सरलता से अन्य ग्राम में पहुँच जाता है। सम्पत्ति का अभाव तथा शत्रुओं के उपद्रव यहाँ कभी नहीं होते। न तो दुर्मिक्ष की आशङ्का कभी होती है एवं न चोरी आदि के उपद्रव होते हैं। आतङ्क एवं आधि-व्यधि की कभी भी सम्भावना नहीं रहती। किसी का तिरस्कार तो होता ही नहीं। कोशल देश के निवासी वैभवशाली, धार्मिक, न्यायी एवं गुणज्ञ होते हैं। ऐसे कोशल देश में स्वर्ग सदृश रमणीक अयोध्या नाम की एक नगरी है ! वह देव-पूजादि कर्मों से त्रिभुवन में प्रख्यात हो चुकी है। श्रीनामिराज के पुत्र ऋषभनाथ स्वामी (प्रथम तीर्थकार) के जन्मोत्सव के अवसर पर कुबेर ने स्वयं इस नगरी का निर्माण किया था। इस नगरी के चर्दिक सदृढ दर्गनिर्मित होने से शत्र इसमें प्रवेश नहीं कर सकता। नगरी के इस छोर से उस छोर तक पुण्यात्माओं का ही निवास है अर्थात् पापात्मा तो वहाँ रहते ही नहीं। वहाँ के निवासी शोभा में चन्द्रमा से भी अपूर्व हैं-विशेषता यह है कि चन्द्रमा गोल है, जब कि वहाँ के मनुष्य निष्कलङ्क एवं निर्दोष हैं / चन्द्रमा सोलह कलाओं से युक्त है, जब कि लोग तर कलाओं से परिपूर्ण हैं। कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा न्यून होता जाता है, जब कि वहाँ के मनुष्यों के गुण सदा बढ़ते रहते हैं। चन्द्रमा निशाचर होता है, किन्तु वहाँ के मनुष्य अवगुणी नहीं होते ! प्रत्येक घर में गीत, नृत्यकला, केलि, लीला, कटाक्ष , विक्षेपादि से युक्त रूपवती स्त्रियाँ थीं। वहाँ की विवेकी प्रजा सदा षट् कर्मों का पालन करती थी एवं त्यागी, शूरवीर, जिन-धर्म परायण धर्मात्मा वहाँ विपुल संख्या में विद्यमान हैं। इस पनीत अयोध्यापुरी में तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती आदि महापुरुष जन्म लेते हैं / जहाँ देवों द्वारा जन्म-कल्याणकादि महोत्सव सम्पन्न होते हैं, वहाँ की शोभा का वर्णन कहाँ तक किया जाए ?