________________ PP Ad Gunun MS इन्द्राणी / चन्द्रमा की स्त्री रोहिणी है अथवा कामदेव की पत्नी रति / यह यश की मूर्ति है या कीर्ति की छवि। वस्तुतः यह है कौन ? लोग कहते हैं कि चन्द्रमा समुद्र से उत्पन्न होता है, किन्तु मुझे तो इसके कपोलों पर श्वेद-कण में ही चन्द्रमा प्रतीत होता है। शायद ब्रह्मा ने चन्द्रमा के सार से हो इसके मुख की रचना की हो, 86 पद्म-पुष्प से इसके भुजा एवं पग बनाये हों एवं हस्ती के कुम्भस्थल से इसके उरोज युगल। सम्भवतः मृगी के नेत्रों से इस सुन्दरी के नेत्र बनाये गये हैं तथा हंसिनी की चाल लेकर गति। इसकी रचना किस प्रकार हई है, यह मेरी समझ में नहीं आता ? न तो रोसो कोमलांगी त्रिलोक में है एवं न होगी।' चन्द्रप्रभा के सम्बन्ध में ऐसा विचार करते हुए राजा मधु कामातुर हुए। वे हृदयशून्य की तरह उस रानी का सौन्दर्य देखते रह गये, मानो उस सुन्दरी ने उनका चित्त ही चुरा लिशा हो। पुनः राजा मधु ने विचार किया- 'यह जन्म उसी का सफल है अर्थात् मानव जन्म तभी सार्थक है एवं वही कृतकृत्य है या उसी के पुण्य का उदय है. जिसकी यह सन्दरी प्राणवल्लभा है।' उधर तो राजा मधु मोहपाश में बंधे हुए थे एवं चिन्ता में विभोर थे. इधर रानो चंद्रप्रभा आरती कर अपने पति राजा हेमरथ के संग लौट गयी किंतु साथ-ही-साथ अनजाने में वह राजा मध का चित्त भी हरण कर लेती गयी। - अयोध्या के अधिपति राजा मधु विरह में चिन्तातुर हो उठे। उनका चित्त मानो ठगा जा रहा था। वे शैय्या पर पड़ गये। मानसिक कष्ट से उन्होंने आहार-पान, शयन एवं वार्तालाप सब त्याग दिया। राजा को ऐसी स्थिति देख कर उनके चतुर मन्त्री ने अनुमान लगाया कि महाराज किसी गम्भीर चिन्ता में लीन हो गर्थ हैं। उसने स्नेहवश जिज्ञासा की-'हे महाराज ! आप ऐसे चिन्तातुर तथा विकल क्यों हैं ? आप की तो समस्त शोभा ही लुप्त हो गयी है। आप की देहयष्टि पर न तो पूर्ववत राजसी वस्त्राभूषण हैं एवं न आप की चेष्टार वीरोचित हैं। हे महाराज ! क्या आप को कुटिल शत्रु की चिन्ता लगी है ? पर उसकी तो आप तनिक भी चिन्ता न करें, हम उसे क्षणमात्र में परास्त कर देंगे। यदि आप उदासीन हुए, तो हमारी सेना यह समझेगी कि आप शत्र से भयभीत हो रहे हैं।' मन्त्री का कथन सुन कर राजा मधु ने कहा- 'हे मन्त्रीवर! मुझे शत्र || का तनिक भी भय नहीं है।' मन्त्री ने पुनः प्रश्न किया- 'तब कौन-सा कारण है कि आप चिन्तातर तथा दुःखी हो रहे हैं ?' राजा ने मन्त्री को निकट बुला कर कहा- 'हे मन्त्री शिरोमणि ! मैं अपने दुःख का dun clin Aara