________________ P.P.Ad Gurransuri MS नामक एक राजा राज्य करता था। उसके बल एवं रूप की चारों ओर प्रसिद्धि थी। उसने अपने प्रताप से शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर अपनी कीर्ति फैलायी थी। स्वर्ग के इन्द्र एवं पाताल के शेषनाग की तरह वह बलवान राजा, न्याय के साथ भूतल पर शासन करता था। उसकी अत्यन्त रूपवती, नवयौवन-सम्पत्र | गजगामिनी, सर्वाङ्ग सुन्दरी धारिणी नाम की पत्नी थी। जिस प्रकार इन्द्र को इन्द्राणी तथा शिव को पार्वती | प्रिय हैं. उसी तरह पद्मनाभ को धारिणी प्रिय थी। gण्य के प्रभाव से राजा पद्मनाम ने इस रानी के साथ इच्छानुसार सुख-सामग्री प्राप्त कर राज्य का उत्तम रीति से सञ्चालन किया। इस प्रकार राज्य करते हुए। रानी के गर्भ से स्वर्गलोक से चय कर उपरोक्त दोनों देवों (अग्निभूति एवं वायुभूति ब्राह्मण-पुत्रों के जीव) ने दो पुत्रों के रूप में जन्म लिया। सत्य है, पुण्योदय से मनोवांछित पदार्थों की प्राप्ति होती है। पद्मनाभ ने पहिले पुत्र का नाम मधु एवं दूसरे का नाम कैटभ रक्खा / पुत्र उत्पन्न होने की खुशी में राजा ने बड़ा उत्सव मनाया। जब वे राजपुत्र सर्वाङ्ग सुन्दर यौवन-अवस्था को प्राप्त हुए, तो राजा ने कुलवती, रूपवती एवं गुणसम्पत्र योग्य कन्याओं के साथ उनके विवाह कर दिये। ..एक दिन राजा पद्मनाभ ने नव-यौवन सम्पन्न दोनों पुत्रों को देख कर विचार किया कि प्रथम तो इस संसार में मानव जन्म प्राप्त करना ही बड़ा दुर्लभ है ; उसमें भी उत्तम कुल, राज्य, सुख, पराक्रम, गज, अश्व, रथ, योग्य स्त्री-पुत्र आदि की प्राप्ति दुष्कर है एवं इससे भी अलभ्य है जैन धर्म का प्राप्त होना। किन्तु पुण्य के उदय से सारी सामग्रियाँ मुझे प्राप्त हुई हैं। इस संसार में जितनी योग्य सामग्रियाँ हैं, वे मुझे प्राप्त हो चुकी हैं। अतः अब मुझे आत्म-कल्याण की ओर झुकना चाहिये, जिससे अजर-अमर अवस्था प्राप्त हो सके। इस प्रकार दीर्घकाल पर्यन्त विचार कर राजा पद्मनाम को वैराग्य उत्पन्न हुआ। उसने सामन्तों के समक्ष अपने ज्येष्ठ पुत्र मधु को राज-तिलक देकर कैटभ को युवराज बना दिया। इसके पश्चात् राजा पद्मनाम अपनी सहस्रों रानियों रूपी परिग्रह को त्याग कर वैराग्य धारण कर अपने मित्रों को संग ले कर श्री निग्रंथ मुनि की शरण में गया / वहाँ उसने कर्म-आलोचना कर जिन-दीक्षा ले ली अर्थात् वह मुनिपद को प्राप्त हुआ। राजा पद्मनाभ के दोनों पुत्र-राजा मधु एवं कैटम वंश-परम्परा से प्राप्त अपने राज्य का उत्तमतापूर्वक प्राण-सञ्चालन करने लगे। दोनों ही प्रतापी शूरवीर थे। वे प्रजा के सुख की अभिलाषा रखते थे। उनका Jun Gun Aaradhak Trust