________________ P.P.Ad Gurransuri MS आज अधम चांडाल हूँ! इससे मेरा चित्त चिन्ता से ग्रसित o रहा है। अतएव मुझे रोग-शोक-मय से आकुल एवं जरा-जन्म-वेदना रहित अर्थात् इस संसार से मुक्त होने का मार्ग बतलाइये।' मुनि ने उसको प्रार्थना स्वीकार कर उसे निःशङ्कादि अष्टाङ्ग सहित सम्यक्त्व ग्रहण कराया एवं द्वादश प्रकार के धर्म धारण कराये। चाण्डाल एवं कुतिया ने श्रद्धापूर्वक व्रत ग्रहण किये। चाण्डाल की एक माह उपरान्त संन्यासपूर्वक मृत्यु हुई। जिन-धर्म के प्रभाव से वह नन्दीश्वर द्वीप में पांच पल्य की आयुवाला देव हुआ। व्रत पालन के सातवें दिन कुतिया की भी मृत्यु हुई एवं वह उसी देश के राजा की पुत्री हुई। वह अनेक शास्त्रों-उपशास्त्रों का अध्ययन कर बड़ी विदुषी हुई। उसको सुन्दरता देख कर देवाङ्गनायें तक लज्जित होती थी। एक दिन जब वह क्रीड़ा करने के लिए उपवन में गयी, तब राजा ने उसे देख कर विचारा कि पुत्री अब यौवन-सम्पन्न हो गयी है। उन्होंने विवाह के विचार से स्वयम्वर का आयोजन किया। दूतों द्वारा पत्र भेज कर देश-देशान्तरों के राजा बुलाये गये। जब स्वयम्वर मण्डप राजाओं से भर गया, तब राजकन्या ने षोडश प्रकार श्रृङ्गार कर मण्डप में प्रवेश किया। संयोग से उसी समय नन्दीश्वर द्वीप का देव (चाण्डाल का जीव) जिन वन्दना के लिए जा रहा था। उसने राजकन्या का स्वयम्वर देखा। उसे पूर्व-भव का स्मरण हो आया कि यह तो अग्रिला नाम की मेरो पत्नी है। इसे समझाना चाहिए-यह सोच कर उसने अपने स्वरूप को गुप्त रख कर कहा-'हे राजकन्या! क्या तू अपने पूर्व-भव को भूल गयी? कुतिया की दशा में तू ने कितने कष्ट भोगे हैं। अब यह पाणिग्रहण का आडम्बर क्यों रचा गया है ? यह संसार का कारण है। इससे भोग एवं लालसा की प्रवृत्ति बढ़ती है। क्या तुमे तीनों भव के दुःखों का स्मरण नहीं, जो नरक, कुतिया एवं चाण्डाल के भव में हम दोनों ने भोगे हैं।' देव के वाक्यों से राजकन्या को पूर्व-भव का स्मरण हो आया। वह वैराग्यवती हो कर स्वयम्वर से बाहर || | निकल आयी। वैराग्य-विभषिता राजकन्या ने वन में जाकर श्रतसागर मुनिराज से जिन-धर्म की दीक्षा ले ली।। इससे स्वयम्वर में उपस्थित राजकुमारों को बड़ा आश्चर्य हुआ। वे राजकन्या की उदासीनता का कारण न समझ सके। राजा को भी अपनी पुत्री के चले जाने का कारण ज्ञात नहीं हो सका। राजकन्या को सम्बोधित कर वह देव भी अपने स्थान को चला गया। उस राजकन्या ने दीर्घकाल तक सर्जिका के व्रत पालन किये एवं आयु के अन्त में मृत्यु का वरण कर स्वर्गलोक प्राप्त किया। जिन-धर्म के प्रभाव से सब कुछ प्राप्त होना सम्भव Jun Gan Aaradhak Trust 84