________________ PP ACCUMS उच्च स्वर में कहा-'२ शठ! यदि विद्वानों के समक्ष तू शास्त्रार्थ में हमें परास्त कर देगा, तो हम प्रतिज्ञा || करते हैं कि तुम्हारा शिष्यत्व स्वीकार कर लेंगे एवं यदि तुम परास्त हो जाओगे, तो तुम्हें तत्काल इस देश की सीमा से निकल जाना पड़ेगा। तुम्हें क्षणमात्र के लिए भी यहाँ रहने नहीं दिया जायेगा।' मुनिराज ने || 2 कहा-'हे विप्रों ! तुम्हारा कथन मुझे अक्षरशः स्वीकार है। इस प्रकार मुनिराज एवं दोनों द्विज-पुत्र परस्पर वचनबद्ध हुए। वै विद्वतजनों के सम्मुख शास्त्रार्थ के लिए आमने-सामने होकर बैठ गए। जब नगर-निवासियों को ज्ञात हुआ कि मुनि एवं द्विज-पुत्रों में शास्त्रार्थ होनेवाला है,तो वे कौतूहलवश विपुल संख्या में वहाँ आ गये। जब श्रोताओं की पर्याप्त भीड़ इकठ्ठी हो गईं, तब सब लोगों के यथा-स्थान बैठ जाने पर मुनिराज ने सुमधुर वाणी में कहा-'हे द्विज-पुत्रों ! अपने उद्दण्डता का परित्याग कर सर्वप्रथम तुम्ही प्रश्न करो।सस्त्रों में चाहे जहाँ सन्देह हो, शङ्का करो,मैं उसका समाधान करूंगा।' द्विज-पुत्रों ने मुनि के कथन को उनकी गर्वोक्ति समझा। वे आवेश में आकर कहने लगे- 'हे मूढ़ ! पहिले हमें नमस्कार कर, फिर किसी पदार्थ के स्वरूप को समझने में सन्देह हो तो हमसे प्रश्न कर। यदि तू हमें नमस्कार कर अपना सन्देह प्रकट करेगा, तो हम तेरी जिज्ञासा का समाधान कर देंगे।' द्विजों के अशिष्टतापूर्ण व्यवहार से भी मुनि को क्रोध उत्पन्न नहीं हुआ। वे प्रसन्न मुद्रा में बोले - 'एवमस्तु ! मैं एक प्रश्न पूछता हूँ कि तुम दोनों कहाँ से आये हो ?' प्रश्न सुनते ही द्विज हँसने लगे। उन्होंने कहा- 2 मद! तू इतना भी नहीं समझ सका कि हम से आये हैं। यदि त इतना सामान्य-सा ज्ञान भी नहीं रखता. तब तो ज्ञात होता है कि त ने सर्य-चन्द्रमा का नाम भी नहीं सुना होगा।' मुनिराज सात्विकी ने कहा- 'मैं भलीभाँति जानता हूँ कि तुम इसी नगर से आये हो एवं सोमशर्मा नामक ब्राह्मण के पुत्र हो, किन्तु मैं ने तो गूढ़ भाव से प्रश्न किया था कि पूर्वभव की किस पर्याय को त्याग कर तुम दोनों इस भव में आये हो।' विप्र-पुत्रों ने कहा-'क्या कोई ऐसा भी ज्ञानी है, जो पूर्व-भव का वर्णन कर सके ? इस भरी सभा में ऐसा प्रश्न पूछनेवाला वस्तुतः शठ ही है।' मुनिराज बोल | उठे-'यदि तुम में इतनी भी सामर्थ्य नहीं कि अपनी ही पूर्वावस्था बता सको, तो अन्य को क्या हितोपदेश कर सकोगे। तुम्हारे साथ वाद-विवाद करना व्यर्थ प्रतीत होता है।' उत्तर में ब्राह्मण-पुत्रों ने कहा-'हम il लोग तो पर-भव का ज्ञान नहीं रखते। पर यदि तमे ज्ञान है, तो तत्काल कह डाल।' मुनि ने कहा-'एवमस्तु! || इसी नगर से आये हैं Jun Gun Aaradhak Trust