________________ P.PAC Guntasun MS राज को इस प्रकार विषाद करते हुए देख कर गुरु ने कहा-'हे वत्स! रक्षा का एक उपाय मी है। मेरो सम्मति है कि जिस स्थान पर ब्राह्मण-पुत्रों से शास्त्रार्थ हुमा है, तुम रात्रि को वहाँ पहुँच कर उस स्थान के रक्षक क्षेत्रपाल की आराधना कर दो कदम भूमि माप लेना। तुम वहीं ध्यानस्थ हो मृत्यु पर्यन्त संन्यास की प्रतिज्ञा कर आत्म-चिन्तन में लीन हो जाना / ब्राह्मण-पुत्र आते ही तुम पर क्रोधित होंगे एवं तुम्हारे वध करने के निमित्त से खड़ग का वार करेंगे। किन्तु उस समय क्षेत्र का रक्षक देव अपनी शक्ति से उन्हें क्रिया रहित कर देगा। वे हिलने-डुलने भी नहीं पायेंगे। इस प्रकार मुनिसङ्घ की रक्षा हो सकती है। आचार्यश्री के वचनों को सुन कर सात्विकी मुनि को बड़ो प्रसन्नता हुई। उन्होंने गुरु के चरणों में बारम्बार नमस्कार किया एवं उनसे क्षमा-याचना की। साथ ही समस्त मुनिसङ्ग से प्रार्थना करते हुए सात्विको मुनि ने कहा-'यदि यह रात्रि कुशलतापूर्वक व्यतीत हुई, तो मैं प्रातःकाल ही भाप सब के दर्शन के लिए जाऊंगा।' इतना कह कर वे धीरजधारी मुनिराज निशङ्क होकर अपने गन्तव्य की ओर चल पड़े। अपने गुरु आचार्यश्री नन्दिवर्द्धन को माज्ञानुसार वे बडो शीघ्रता के साथ उस स्थान पर जा पहुंचे, जहां ब्राह्मण-पुत्रों से वाद-विवाद हुआ था संध्या का समय होने के कारण सर्वप्रथम मुनिराज ने सामायिक को, इसके पश्चात् उन्होंने क्षेत्रपाल की आराधना कर दो कदम भूमि माप ली। वे बड़ी सावधानीपूर्वक संन्यास धारण कर बैठ गये। जिस समय इन्द्रियों का दमन करनेवाले तथा समता के धारक वे योगीश्वर सात्विक मुनि ध्यानमग्न थे, उसी समय दुष्टात्मा ब्राह्मण-पुत्र अग्निभूति एवं वायुभूति हाथों में दुधारे खड्ग लिए आ पहुंचे। जब उनकी दृष्टि मुनिराज पर पड़ी, तब उन्हें ध्यानमग्न देख कर उनका चित्त प्रफुल्लित हो गया। वे सोचने लगे-'अब तो बिना परिश्रम के ही हमारा कार्य सिद्ध हो गया, क्योंकि हमारा मान-मन करनेवाला शत्रु अनायास ही मिल गया।' वे मुनिराज के समीप पहुँच कर कहने लगे-'२ दुष्ट पापात्मा ! विद्वानों की सभा में वाद-विवाद कर तू ने बड़ा अन्याय किया है। तू हमारे मान को मङ्ग करनेवाला है। अपने अपराध का स्मरण कर एवं उसका दण्ड भोग। अग्निभूति ने अपने अनुज वायुभूति से कहा-'हे भ्राता ! क्या देख रहे हो। शीघ्रता से खड्ग प्रहार द्वारा इसके प्राण ले लो, तभी हमारी व्यथा शान्त होगी।' उत्तर में वायुभूति ने कहा-'भ्राता! मेरी एक विनती सुनो। यह मुनि ध्यान-मग्न है, अतः इस समय प्रहार करने से मुनिघात Jun Gun Aaradhan