________________ का P.P.Ad Gunanasuti MS - अधिक प्रेम करते हैं। किन्तु अब तो आप उसके महल की और भी नहीं जाते। इसका यथार्थ कारण बतलाइये।' श्रीकृष्ण ने कहा--'हे प्रिये ! कारण यह है कि सत्यमामा बड़ी अमिमानिनी है। यह मुझे रुचिकर प्रतीत नहीं होता। उस सुवर्ण के आभूषण से लाभ ही क्या, जिससे कर्ण ही खण्डित हो जाए ? उस सुवर्ण का तो गला देना चाहिये, जिससे कि कर्ण खण्डित होने की सम्भावना ही न रहे।' रुक्मिणी ने पुनः निवेदन किया-"किन्तु क्या प्राप्त वस्तु कोई त्याग देता है ? वास्तव में कर्णों को खण्डित करनेवाला सुवर्ण भो त्यागा नहीं जाता।' रुक्मिणी के ऐसे नीतिप्रद उदार वचन सुन कर श्रीकृष्ण को बड़ा सन्तोष हुआ। उन्होंने कहा-'तुमने कहा है, इसलिये मैं कल सत्यभामा के यहाँ जाऊँगा।' उसी समय रुक्मिणी ने पान ( ताम्बूल) का बीड़ा चबा कर भूमि पर थूक दिया था। श्रीकृष्ण ने बड़ी चतुराई से बिना किसी के देखने में आये हो उस उच्छिष्ट को अपने अङ्गवस्त्र के छोर में बाँध लिया। / दूसरे दिवस वे सत्यभामा के महल की ओर चले। एक तो वह हतभागिनी चिन्ता में घुल रही थी, दूसरे श्रीकृष्ण उसे ठगने के विचार से उसके यहाँ आये थे। सत्यभामा ने नवोढ़ा सौत के यहाँ से पति को अपनी ओर जाते हुए देख कर द्वेषपूर्ण वचन कहे- 'हे नाथ ! आज क्या मार्ग भूल कर चले आये हैं ? यह तो आप को प्राण-वल्लभा का महल नहीं है।' श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया- 'हे प्रिये! मैं तो तेरी इच्छा के विरुद्ध नहीं आया हूँ। यदि भूल हो गई हो, तो क्या अब लौट जाना उचित होगा?' इस प्रकार के अनेक कृत्रिम निवेदनों से उन्होंने सत्यभामा को प्रसत्र कर लिया एवं बड़ी नम्रता से बोले-'हे देवी ! मुझे निद्रा आ रही है। यदि तू अनुमति दे, तो मैं यहीं शयन कर लँ-विश्राम भी हो जायेगा।' सत्यभामा ने कहा-'इसमें क्या सन्देह है, निद्रा तो आती ही होगी। कारण वह नवोढ़ा (नवीन सौत) आप को शयन करने नहीं देती होगी। उसे माप को प्रसन्न करते रहना चाहिये। मुझे इसकी चिन्ता नहीं, क्योंकि मैं वर्षों तक आप के साथ भोग-विलास कर चुकी हूँ। आप क्रीड़ा से थक कर ही मेरे महल में शयन किया करें। मैं सदैव आप को सुखी देखना चाहती हूँ।' सत्यभामा के ऐसे वचन सुन कर श्रीकृष्ण बोल उठे-'मला मुझे विश्वास नहीं होगा कि तुम मेरा हित चाहती हो ? नवीन तो नवीन हो है, किन्तु तुम तो समग्र शनियों में प्रिय प्राणवल्लभा हो।' इतना कह कर श्रीकृष्ण निद्रा-मग्न हो गये। उनके अङ्गवस्त्र में बंधे हुए उच्छिष्ट ताम्बूल की सुगन्धि चतुर्दिक विकीर्ण होने GUSTOMERINGINEERINAAMARRERAORESERVERSE Jun Gun Aaradhak Trust