Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

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Page 57
________________ P.P.AC.GunratnasuriMS. . नमस्कार करूंगा, प्रदक्षिणा दूंगा एवं साष्टांग प्रणाम कर उनका ससक कागा इसके पश्चात मेरे पुत्र के अपहरण का समस्त वृत्तान्त उन्हें सुना कर तुझे धैर्घ देने के लिए शीघ्र लौर आ इस प्रकार नारद रुक्मिणी को बाबासन कर पूर्व-विदेह क्षेत्र को रवाना हुए। दर्शकों ने शीश उठा कर देखा कि नारद बड़े वेग से आकाश में गमन कर रहे थे। देखते-देखते वे सूर्य के / विमान से भी आगे निकल कर अदृश्य हो गये। नारद सुमेरु पर्वत पर जा पहुंचे। रात्रि का समय निकट था, अतः उन्होंने संध्या-वन्दना की। तत्पश्चात् प्रफुल्लित हो कर नारद ने अकृत्रिम चैत्यालयों के जिन-बिम्बों की बाराधना की। वहाँ पर चारण ऋद्धि धारक मुनिगण विराजमान थे। उन्हें भी नारद ने विधिवत् नमस्कार किया। उस दिन की रात्रि वहीं व्यतीत हुई। प्रातःकाल स्रान कर के पूजन से निवृत्त हो कर उन्होंने भागे के / लिए प्रस्थान किया। वे अल्प काल में ही पुण्डरीकिसी नगरी में जा पहुंचे। वहाँ की शोभा देख कर उन्हें बड़ा पाश्चर्य हुआ, कारण यह था कि ऐसी नगरी उन्होंने कभी देखी ही नहीं थी। वहाँ धर्म-चक्र के प्रवर्तक तीर्थङ्कर सदा विराजमान रहते हैं / छः खण्डों के स्वामी चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेवादिकों का भी वहाँ निवास रहता है। इसके अतिरिक्त जिन-भक्ति से प्रेरित होकर सुर-असुर भी सदा माया करते थे। ऐसी अलौकिक नगरी का वर्णन मला कैसे सम्भव हो सकता है ? दूर से ही नारद ने समवशरण का दर्शन किया। देव-देवेन्द्र-खगेन्द्रादिक विद्यमान तीर्थङ्कर भगवान श्रीसीमन्धर स्वामी की पूजा-वन्दना करने में संलग्र थे। समवशरण देख कर नारद को प्रतीत हुआ कि तीन लोक की सारभूत सामग्रो यहीं एकत्रित हो गयी है। अनेक प्रतिज्ञाओं के पालक ब्रह्मचारी नारद ने व्योम-मार्ग से ही भक्तिपूर्वक समवशरण में प्रवेश किया। श्री सीमन्धरस्वामी के दर्शन से नारद को आनन्द का जो अनुभव हुआ, वह वर्णनातीत है। उन्होंने तीन प्रदक्षिणाएँ दों एवं इस प्रकार वे जिनेन्द्र देव की स्तुति करने लगे___'हे देवाधिदेव ! मैं नारद आप को बारम्बार नमस्कार करता हूँ। चतुर्निकाय के देव आप की सेवा करते हैं / आपके कर्म-कलङ्क एवं मोह-पाश क्षीण हो चुके हैं। आपने कामरूपी गजराज को सिंह की तरह परास्त किया है। आप सत्पुरुष रूपी कमलों के लिए सूर्य के समान हैं / आप को नमस्कार है / हे भगवन् ! आप के चरणकमलों की सुर-असुर-मानव सभी वन्दना करते हैं। आप मोहान्धकार का नाश करने के लिए चन्द्रमा - Jun Gun Aaradhak. THE

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