________________ सदृश अविवेकी पुरुष होते हैं, वे इस पर विचार नहीं करते।' जब श्रीकृष्ण ने देखा कि सत्यभामा अत्यन्त क्रुद्ध हो गयी है, तब वे वहाँ से प्रस्थान कर गये। श्रीकृष्ण के वार्तालाप से रुक्मिणी भी समझ गयी थी कि यह सत्यभामा है। अब उसे अपने वन-देवी के स्वरूप पर लज्जा प्रतीत हुई। उसने अपने विनम्र स्वभाव के अनुकूल ज्येष्ठा मान कर सत्यभामा के चरणों में नमस्कार किया। सत्य ही है, उत्तम कुल में जन्मधारी स्वभाव से विनम्र होते हैं / रुक्मिणी एवं सत्यभामा ने परस्पर प्रेमालिंगन किया। सत्यभामा ने जिज्ञासा की—'हे रुक्मिणी ! तुम प्रसन्न तो हो?' रुक्मिणी ने कहा-'हे भगिनी! आप की कृपा से मैं सब प्रकार से सुखपूर्वक हूँ।' दोनों ने नयनों से परस्पर का सौन्दर्य परखा एवं पुनः प्रेमपूर्वक सम्भाषण करने लगीं। तत्पश्चात् वे दोनों उद्यान से निकली एवं अपने-अपने महल में चली गयीं। लेकिन सत्यभामा का जो घोर अपमान हुआ था, उससे वह हार्दिक दुःखी थी। उसके क्लेश का पारावार नहीं था। यह तो न्याय की बात है। भला ऐसी कौन नारी है, जिसे अपने अपमान से दुःख न होता हो। / एक दिन महाराज श्रीकृष्ण प्रजाजनों के साथ सभा में आसीन थे। ठीक उसी समय कुरुराज दुर्योधन का दूत आया। उसने भक्तिपूर्वक श्रीकृष्ण को प्रणाम किया। तत्पश्चात् श्रीकृष्ण के समक्ष एक पत्र रख कर अनुमति ले कर वह अपने योग्य स्थान पर बैठ गया। श्रीकृष्ण ने पत्र को उठाया एवं वाचन हेतु मन्त्री को दे दिया। मन्त्री ने श्रीकृष्ण को आनन्द प्रदान करने के लिए उस स्पष्ट अर्थवाले पत्र को बाँच कर सुनाया द्वारावती के अधिपति महाराज श्रीकृष्ण को, जिनके कमलवत् चरणों की सेवा अनेक नृपतिगण करते हैं, हस्तिनापुर के राजा दुर्योधन का विनय तथा भक्तिपूर्वक प्रणाम स्वीकृत हो। आप की कृपा से यहाँ सर्व प्रकार मङ्गल है, आप की कुशलता एवं प्रसनता के हम सदैव अभिलाषी हैं। यद्यपि आप हम लोगों से सदर निवास करते हैं, तब भी हमारे प्रिय बन्धु हैं। बाप हमारे सदा से हितैषी हैं, अतः आप से कुछ निवेदन है। आशा है आप स्वीकार करेंगे। मेरी प्रार्थना है कि भविष्य में मेरी या आप की जो सन्तान हों, उनमें परस्पर विवाह-विधि के अनुसार मैत्री स्थापित की जाए। सम्भवतः बाप की पटशनी के पुत्र उत्पत्र हो एवं मेरे यहाँ पुत्री हो, तो इन दोनों का विवाह हो जाये। यदि पुण्योदय से मेरे यहाँ पुत्र उत्पन्न हुआ एवं आप के पुत्री हुई, तो भी नियमानुसार विवाह होना चाहिये, क्योंकि संसार में समग्र प्राखियों का यथायोग्य सम्बन्ध स्थापित / Jun Gun Aaradhak Trust /