Book Title: Paumchariyam Part 03
Author(s): Parshvaratnavijay
Publisher: Omkarsuri Aradhana Bhavan
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कोडिसिलुद्धरणपव्वं -४८/१०४-१२५
३९९ तम्हा करेहि बुद्धी, अम्हं वयणेण मुयसु रणतत्तिं । अबलस्स बलियएणं, समयं को विग्गहो एत्थ ? ॥११७॥ जो सो अणुव्वयधरो, बिभीसणो नाम देसविक्खाओ। तस्स अलङ्गं वयणं, काही लङ्काहिवो नियमा ॥११८॥ घणपीइसंपउत्तो, तस्स य वयणेण बोहिओ सन्तो । अप्पिहिइ जणयतणयं, दसाणणो नत्थि संदेहो ॥११९॥ तम्हा गवेसह लहुं, नयकुसलं वाणराण सामन्तं । जो सह बिहीसणेणं, दहवयणं पत्तियावेइ ॥१२०॥ एयम्मि देसकाले, महोदही नाम खेयरो भणइ । बहुजन्तदुग्गमा सा, कया य लङ्का विसमसाला ॥१२१॥ एयाण मज्झयारे, एक्कं पि हु खेयरं न पेच्छामि । जो पविसिऊण लवं, पुणरवि सिग्धं नियत्तेइ ॥१२२॥ पवणंजयस्स पुत्तो, सिरिसेलो नाम निग्गयपयावो । बल-कन्ति-सत्तिजुत्तो, सो नवरं तं पसाएइ ॥१२३॥ सव्वेहि एवमेयं, कईहि अणुमन्निऊण तं वयणं । हणुयस्स सन्नियासं, सिरिभूई पेसिओ दूओ।१२४॥
___ तुङ्गबलगव्विएण वि, पुरिसेणं निययसत्तिजुत्तेण सया। होयव्वं नियमइणा, किंचि गणेन्तेण कारणं चिय विमलं ॥१२५॥ ॥ इय पउमचरिए कोडिसिलाऊद्धरणं नाम अट्ठचत्तालं पव्वं समत्तं ॥
तस्मात्कुरु बुद्धिमस्माकं वचन मुञ्च रणवातीमेमाम् । अबलस्य बलिना समकं को विग्रहोऽत्र ? ॥११७॥ यः सोऽनुव्रतधरो बिभीषणो नाम देशविख्यातः । तस्यालझ्यं वचनं करिष्यति लकाधिपो नियमा ॥११८॥ घनप्रीतिसंप्रयुक्तस्तस्य च वचनेन बोधितस्सन् । अर्पिष्यति जनकतनयां दशाननो नास्ति संदेहः ॥११९।। तस्माद्गवेषयत लघु नयकुशलं वानराणां सामन्तम् । य: सह बिभीषणेन दशवदनं प्रत्यायति ॥१२०॥ एतस्मिन्देशकाले महोदधि र्नाम खेचरो भणति । बहुयन्त्रदुर्गमा सा कृता च लका विषमशाला ॥१२१।। एतेषां मध्य एकमपि हु खेचरं न पश्यामि । यः प्रविश्य लकां पुनरपि शीघ्रं निवर्तयेत् ।।१२२।। पवनञ्जयस्य पुत्रः श्रीशैलो नाम निर्गतप्रतापः । बल-कान्ति-शक्ति युक्तः स नवरं तं प्रसाधयति ॥१२३॥ सवैरेवमेतत्कपिभिरनुमन्य तद् वचनम् । हनुमतः सन्निकाशं श्रीभूतिः प्रेषितदूतः ॥१२४॥ तुङ्गबलगवितेनापि पुरुषेण निजशक्तियुक्तेन सदा । भवितव्यं निजमत्या किंचिद्गणता कारणमेव विमलम् ॥१२५।।
॥इति पद्मचरित्रे कोटिशिलोद्धरणं नामाष्टचत्वारिंशतमं पर्वं समाप्तम् ॥
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