Book Title: Paumchariyam Part 03
Author(s): Parshvaratnavijay
Publisher: Omkarsuri Aradhana Bhavan
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॥ ५२. हणुवकण्णालाभलङ्काविहाणपव्वं ।
अह सो पवणाणन्दो, तिकूडसमुहो नहेण वच्चन्तो । पायारेण निरुद्धो, धणुसंठाणेण तुङ्गेणं ॥१॥ भणइऽह केण निरुद्धो, गइपसरो मह इमस्स सेन्नस्स ? । एयं मुणेह तुब्भे, जेण लहुंचेव नासेमि ॥२॥ पवणतणयस्स मन्ती, साहेइ महामइ त्ति नामेणं । मायाए रक्खसेहि, कओ इमो तुङ्गपागारो ॥३॥ अह तस्स देइ दिट्ठी, पेच्छइ बहुकूडजन्तनियरोहं । दाढाविडम्बिओटुं, विउलं आसालियावयणं ॥४॥ भीमाहिफडावियडं, विमुक्कसुंकारविससमुज्जलियं । पलयघणसरिसभूयं, समन्तओ घोरपायारं ॥५॥ सो वज्जकवयदेहो, हणुओ हन्तूण जन्तपायारं । आसालियाए वयणे, पइसाइ तओ गयाहत्थो ॥६॥ अह तीए फालिऊणं, कुच्छी नक्खेसु निग्गओ सिग्धं । सालं पुणो पुणो च्चिय, गयापहारेसु चुण्णेइ ॥७॥ तं घोरमहासई, सुणिऊणाऽऽसालियाए विज्जाए । सयमेव सालरक्खो, वज्जमुहो उढिओ रुट्ठो ॥८॥ दट्टण अभिमुहं तं, मारुइसुहडा वराउहसमग्गा ।अह जुज्झिउं पयत्ता, समयं पडिवक्खसेन्नेणं ॥९॥ तं रणमुहं पयत्तं, अहवा किं जंपिएण बहुएणं ? ।जह तक्खणम्मि जायं, नच्चन्तकबन्धपेच्छणयं ॥१०॥
॥ ५२. हनुमत्कन्यालाभलकाविधानपर्वम् ॥
अथ स पवनानन्दस्त्रिकूटसंमुखो नभसा व्रजन् । प्राकारेण निरुद्धो धनुःसंस्थानेनोत्तुङ्गेन ॥१॥ भणत्यथ केन निरुद्धो गतिप्रसरो ममैतस्य सैन्यस्य ? । एवं मुणत यूयं येन लघ्वेव नश्यामि ॥२॥ पवनतनयस्य मन्त्री कथयति महामन्त्रीति नाम्ना । मायया राक्षसैः कृतोऽयमुत्तुङ्गप्राकारः ॥३॥ अथ तस्य ददाति दृष्टिं पश्यति बहुकूटयन्त्रनिजरोधम् । दंष्ट्राविडम्बितौष्ठं विपुलमाशालिकावदनम् ॥४॥ भीमाहिफटाविकटं विमुक्तसुंकारविषसमुज्ज्वलितम् । प्रलयघनसदृशभूतं समन्ततः घोरप्राकारम् ॥५॥ स वज्रकवचदेहो हनुमान्हत्वा यन्त्रप्राकारम् । आशालिकाया वदने प्रविशति ततो गदाहस्तः ॥६॥ अथ तस्याः पाटयित्वा कुक्षि नखै निर्गत: शीघ्रम् । शालं पुनः पुनरेव गदाप्रहारैः पिनष्टि ॥७॥ तत्वोरमहाशब्दं श्रुत्वाऽऽसालिकाया विद्यायाः । स्वयमेव शालरक्षको वज्रमुख उत्थितो रुष्टः ॥८॥ दृष्ट्वाऽभिमुखं तं मारुतिं सुभटा वरायुधसमग्राः । अथ योद्धं प्रवृत्ताः समकं प्रतिपक्षसैन्येन ॥९॥ तं रणमुखं प्रवृत्तमथवा किं जल्पितेन बहुना ? । यथा तत्क्षणे जातं नृत्यत्कबन्ध-प्रेक्षणकम् ॥१०॥ एतादृशे युद्धे वर्तमाने सुनिशितेन चक्रेण । छिन्नं शिरश्च सहसा मारुतिना वज्रवदनस्य ॥११॥
१. पलयघणस्स व सरिसं समन्तओ-प्रत्य० ।
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